बच्चों को वैक्सीन लगाने का प्रावधान नहीं होने की वजह से हाईरिस्क में शामिल सात सौ बच्चे (0-15 वर्ष) तीसरी लहर के दौरान पखवाड़ेभर में कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। अच्छी बात ये है कि इसमें से एक बच्चे को छोड़कर बाकी को संक्रमण की वजह से अस्पताल जाने की नौबत नहीं पड़ी।
एक साल का जो बच्चा अस्पताल पहुंचा, वह गंभीर बीमारी से पीड़ित था और उसकी जान चली गई। स्वास्थ्य विभाग इस बात को लेकर राहत की सांस ले रहा है कि कोरोना इस बार जानलेवा नहीं हुआ है। खासकर जो बच्चे कोरोना के शिकार हुए हैं, उनमें से लगभग सभी घर में ही रहकर इस वायरस को हराने में सफल साबित हुए हैं।
सात सौ बच्चे कोरोना पॉजिटिव
लहर की शुरुआत के पहले विशेषज्ञ इस बात की आशंका जता रहे थे कि वैक्सीनेशन नहीं होने की वजह से बच्चों पर कोरोना भारी पड़ेगा। जनवरी से केस बढ़े तो संक्रमितों की सूची में एक से लेकर पंद्रह साल के बच्चे भी शामिल हुए। बच्चों की संख्या अधिक होने की आशंका के आधार पर उपचार के लिए आयुर्वेदिक अस्पताल में आईसीयू और वेंटिलेटर की व्यवस्था भी की गई थी। साथ ही इंडोर स्टेडियम को भी एक विकल्प के रूप में रखा गया था। विभागीय सूत्र इसे बड़ी राहत मानते हैं कि अब तक बच्चों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत नहीं आई। एक बच्चा, जो दूसरी बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हुआ था, उसे कोरोना संक्रमित पाया गया था और बाद में उसकी मौत हो गई।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. निलय मोझरकर के मुताबिक कोरोना का वायरस इस बार सर्दी-खांसी का ही रूप दिखा रहा है। पिछली बार की तरह यह फेफड़े तक पहुंचकर निमोनिया या अन्य साइड इफेक्ट पैदा नहीं कर रहा है।
बच्चे संक्रमित हो रहे हैं, मगर ज्यादातर जल्दी ही बिना किसी परेशानी के स्वस्थ हो जा रहे हैं। आयुर्वेदिक काॅलेज स्थित बच्चों के अस्पताल में अब तक एक भी बच्चा संक्रमित होकर इलाज के लिए नहीं पहुंचा है।
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