सुप्रीम कोर्ट ने अपने बीते सुनवाई में कहा है कि सुरक्षा के लिए बहू के गहनों को अपने पास रखना भारतीय दंड संहिता की धारा-498ए के तहत क्रूरता नहीं है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने यह भी कहा कि एक वयस्क भाई को नियंत्रित न कर पाना, स्वतंत्र रूप से रहना, झगड़े से बचने के लिए भाभी के साथ तालमेल बिठाने की सलाह देना आदि को भी आईपीसी की धारा-498 ए के तहत दुल्हन के साथ क्रूरता नहीं कहा जा सकता।
क्या है पुरा मामला
धारा-498ए एक महिला के साथ पति या पति के रिश्तेदारों की क्रूरता को संदर्भित करता है। इस मामले में एक महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ क्रूरता का मामला दर्ज कराया था।
मामले में हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति द्वारा अमेरिका लौटने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। वह अमेरिका में कार्यरत है। हाईकोर्ट ने देश छोड़ने के लिए व्यक्ति की प्रार्थना को खारिज कर दिया था क्योंकि वह धोखाधड़ी, आपराधिक धमकी, आपराधिक विश्वासघात, चोट पहुंचाने आदि के मामले में अपने बड़े भाई और माता-पिता के साथ आरोपी है।
बहू ने गहनों का विवरण नहीं दिया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा शिकायतकर्ता (बहू) ने उन गहनों का कोई विवरण नहीं दिया है जो कथित तौर पर उसकी सास और देवर ने लिए थे। याचिकाकर्ता के पास कोई आभूषण पड़ा है या नहीं, इस बारे में भी कोई चर्चा नहीं हुई है। केवल एक सामान्य आरोप है कि सभी अभियुक्तों ने शिकायतकर्ता बहू के जीवन को बर्बाद कर दिया है।
याचिकाकर्ता को हिरासत में लेना गलत
शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपों की प्रकृति को देखते हुए यह समझ में नहीं आता कि याचिकाकर्ता को भारत में कैसे और क्यों हिरासत में लिया जाना चाहिए था।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कुरुक्षेत्र ने अपीलकर्ता को न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ने का निर्देश देने में गलती की। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत में आरोप प्रथम दृष्टया धारा-498 ए के तहत किसी अपराध का खुलासा नहीं करते हैं।
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