आज है बाउंड़ी
“बछर घुरे आइलो मकर संगे टुसूमनी आइलो, टुसूमनी गो लक्खी माँ भालो.” यह टुसू गीत पंचपरगना क्षेत्र में बहुत प्रचलित है. पारम्परिक सह लोकप्रिय टुसू पर्व के दौरान गाए जाने वाले ऐसे बहुत गीत हैं, जिन्हें इस मौके पर हर जगह सुनने को मिलेंगे. ये पारंपरिक आस्था और विश्वास के गीत हैं । टुसू पर्व झारखण्ड की संस्कृति के साथ आदिवासी-कुड़मी समुदाय को विरासत के रूप में मिला अनुपम और अनूठी धरोहर है, जो बाउंड़ी यानि आज गुरूवार 13 जनवरी से प्रारंभ हो गया। इस पर्व को मकर पर्व के नाम से भी जाना जाता है। कई तरह के पीठा, पुआ-पकवान, चिकन-मटन आदि बनने वाले सामग्रियों की इसी दिन खरीदारी पूरी कर ली गई।
ढेंकी के कुटे चावल के आटे यानि गुंड़ी से ही बनाए जाते हैं कई तरह के पीठे
ढेंकी के कुटे चावल के आटे यानि गुंड़ी से ही बनाए जाते हैं कई तरह के पीठेइस परब में ढेंकी के कुटे चावल के आटे यानि गुंड़ी से ही बनाए जाते हैं कई तरह के पीठे. यह सदियों पुरानी परंपरा है, जिसका निर्वहण लोग करते आ रहे हैं. इसका अलग ही महत्व है, क्योंकि यह किसान की अपनी अलग पहचान है.
कन्याओं के लिए विशेष महत्व रखता है टुसू परब
शुक्रवार को मकर संक्रांति मनाया जाएगा। इस दिन प्रत्येक घरों में गुड़ से बना पीठा, डून्बू पीठा, मास पीठा, चकली पीठा, चुड़ा-दही, मुढ़ी व तिलकुट से पर्व की शुरुआत की जाती है। एक पखवाड़े तक गावों-घरों में खुशी का माहौल बना रहता है। गांव की कन्याओं द्वारा विगत अगहन संक्रांति के दिन स्थापित टुसूमनी की करती आ रही आराधना मकर संक्रांति को परवान चढ़ने लगता है। रंगीन कागज-बांस के बने आकर्षक चौड़ल के साथ ढोल-नगाड़ों की थाप पर पारम्परिक परिधानों में युवक-युवतियों का नृत्य-गीत ही टुसू परब की पहचान है।
पिछले दो सालों से कोरोना की वजह से यह परब तरीके से नहीं मनाया जा सका है, फिर भी लोग घरों में पारंपरिक तरीके से इस साल मना रहे हैं.
संक्रांति को कृषि की शुरुआत करते हैं किसान
टुसू पर्व को लेकर खासकर कृषकों में काफी उत्साह है। इसी दिन से नये वर्ष की शुरुआत मानते हुए खेतों पर हल चलाकर कृषि कार्य का शुभारंभ करते हैं । किसानी का भी साथ में अहम योगदान रहता है । हल चलाकर किसान जब वापस घर आता है, तो तैयारी कर घर में बैठी महिला तेल-पानी के साथ स्वागत करती है उसके पैर धोती है। यह नेगाचार संक्रांति के दुसरे दिन यानि आखाईन जातरा के दिन किया जाता है.
नई उपज की अनाज से बनता है गुड़ पीठा
पंचपरगना क्षेत्र के प्रत्येक गांवों में बनाए जाने वाले पुआ-पकवानों में गुड़ पीठा का एक अलग ही महत्व है। हर घरों में अरवा चावल से गुंडी बनाई जाती है। इसी गुंडी को गूड़ से मिलाकर पीठा तैयार किया जाता है। इसी पीठा लेकर अपने-अपने सगे संबंधियों के घरों में गोतियारी करते हैं और संबंध को प्रगाढ़ बनाते हैं।
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एक पखवारे तक लगते हैं गावों में मेले
झारखण्ड के विभिन्न जगहों में इस परब की धूम रहती है. इस मौके पर मेले लगते हैं. तमाड़, बुंडू, सोनाहातू, अड़की, सिल्ली, इंचागढ़, चांडिल व सरायकेला, खरसवा, जमशेदपुर, चक्रधरपुर, गिरिडीह, धनबाद, रामगढ़ आदि जिलों में टुसू मेले का आयोजन किए जाते हैं। पश्चिम बंगाल में भी टुसू पर्व को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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