भारत की जेलों में बंद 70 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं। यानी कि भारत की जेलों में बंद हर 10 में से 7 कैदी अंडरट्रायल हैं। यानी कि ये वो बंदी हैं जिन्हें अदालत से सजा नहीं मिली है, लेकिन वो जेल में बंद हैं। ये कैदी ट्रायल प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं। बहुत संभव है कि इनमें से कई कैदी बरी होकर बाहर आ जाएं।लेकिन धीमी न्यायिक प्रक्रिया, संसाधनों की कमी की वजह से इन्हें अपनी जिंदगी जेल में गुजारनी पड़ रही है।
क्या कहती है इंडिया जस्टिस 2020 की रिपोर्ट
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के अध्ययन में सामने आई है। बता दें कि हाल ही में टाटा ट्रस्ट ने कुछ अन्य संस्थानों के सहयोग से इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020 जारी की है। यह रिपोर्ट देश के अलग-अलग राज्यों की न्याय करने की क्षमता का आकलन करती है।
टाटा ट्रस्ट की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 चार श्रेणियों में सर्वे के आधार पर तैयार की गई है।ये श्रेणी हैं पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी मदद।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट कहती है कि भारत में कुल कैदियों में से दो तिहाई बिना दोष सिद्ध हुए ही कैद में हैं। इन पर न्यायिक प्रक्रिया चल रही है। न्यायिक भाषा में इन्हें विचाराधीन कैदी कहा जाता है। विचाराधीन कैदी वो व्यक्ति हैं जिन्हें कैद में रखा गया हो वह अपने अपराध की पुष्टि के लिए मुकदमे की प्रतीक्षा करता है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत के कारागारों में भीड़भाड़ की स्थिति है। यानी कि यहां क्षमता से ज्यादा कैदी हैं। 2016 में जेल ऑक्युपेंसी रेट 114% थी जो 2019 में बढ़कर 119 फीसदी हो गई।
देश में भीड़भाड़ वाली जेलें
35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अंडर ट्रायल कैदियों की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से ऊपर है। 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5 साल से ज्यादा समय के विचाराधीन कैदियों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।
भारत की जेल में प्रत्येक दोष सिद्ध कैदी पर दो अंडरट्रायल कैदी हैं। लॉकडाउन के कारण हो रही देरी, वकीलों के कोर्ट तक न पहुंच पाने से कैदियों का अधिकार और प्रभावित हुआ है।
दिल्ली और यूपी की जेलें भरी हुईं
आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली के जेलों में कैदियों की संख्या सबसे ज्यादा 175 फीसदी है यानी कि यहां की जिन जेलों में 100 कैदियों के रहने की क्षमता है वहां 175 कैदी रह रहे हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में ये स्थिति 168 प्रतिशत थी। यहां जिन जेलों में 100 कैदियों के रहने की क्षमता है वहां 168 बंदी रहते हैं। देश की सेंट्रल जेलों में सबसे ज्यादा भीड़भाड़ है। यहां क्षमता के अनुपात में 124 फीसदी कैदी रहते हैं, जबकि जिला जेलों में 130 फीसदी कैदी रहते हैं।
लॉकडाउन के दौरान जेलों से 42 हज़ार से अधिक विचाराधीन क़ैदियों को किया गया रिहा
कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान जेल में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए पिछले डेढ महीने में 42,259 विचाराधीन कैदियों को देश भर की जेलों से रिहा किया गया है।रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक 9,977 विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया।
इसके बाद राजस्थान से 5,460, तमिलनाडु से 4,547, पंजाब से 3,698, महाराष्ट्र से 3,400, मध्य प्रदेश से 2,833, दिल्ली से 2,177, हरियाणा से 1,843, पश्चिम बंगाल से 1,715 और छत्तीसगढ़ से 1,643 विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया।
जेलों में 2 गुने तेजी से फैलता है HIV, यौन रोग
जेल के बारे में एक चौंकाने वाला खुलासा इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में हुआ है। जेलों में सामान्य आबादी की तुलना में HIV, यौन संक्रमित रोग, हेपाटाइटिस बी और सी का प्रसार सामान्य आबादी की तुलना में 2 से 10 गुना अधिक है।रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना संक्रमण की पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है, लेकिन 2021 तक 18000 से अधिक कैदी और कर्मचारी इसकी चपेट में आए थे।
अधिकारियों के एक तिहाई पद खाली
भारत की जेलों में अधिकारियों की बड़ी संख्या में कमी है। अधिकारी स्तर पर बात करें तो आधे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में तीन में से एक पद खाली है। उत्तराखंड में 75 प्रतिशत वैकेंसी है, वहीं तेलंगाना ने इस दिशा में सुधार किया है और वहां रिक्तियां 1 फीसदी से भी कम है। जबकि कैडर स्टाफ की बात करें तो 29 प्रतिशत पद खाली है।झारंखड में 64 फीसदी पद खाली है।
मॉडल जेल मैनुअल 2016 के मुताबिक प्रत्येक 200 कैदियों के लिए एक सुधारक अधिकारी और प्रत्येक 500 कैदियों के लिए एक मनोवैज्ञानिक अधिकारी होना चाहिए। इसकी तुलना में अगर राष्ट्रीय औसत की बात करें ते 1617 कैदियों पर एक कल्याण अधिकारी और प्रत्येक 16503 कैदियों पर एक मनोचिकित्सक है। राज्यों के स्तर पर तो हालत और भी खराब है। यहां पर प्रति 50649 कैदी पर एक मनोचिकित्सक है। इसी कैटेगरी में उत्तर प्रदेश भी आता है।
आंध्र प्रदेश और सिक्कमि सहित नौ राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने यहां ऐसे पद की आज तक स्वीकृति ही नहीं दी है।
अगली कड़ी में पढ़िए: सवालों के घेरे में जेलों की सुरक्षा!
पहली कड़ी यहाँ पढ़े : न्याय का इंतजार कर रहे हैं भारत के 70 प्रतिशत कैदी
दूसरी कड़ी यहाँ पढ़े : बिना अपराध 20 साल बिताए जेल में, अब कोर्ट ने किया रिहा
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