देश का भविष्य उसके युवाओं पर ही निर्भर करता है. नई प्रतिभा के आने से देश को ना सिर्फ तरक्की मिलती है, बल्कि देश का विकास भी सही तरह से होता है. वहीं देश के युवाओं के सही मार्ग दर्शन के लिए हर साल भारत में युवा दिवस मनाया जाता है.
भारत में युवा दिवस मनाने की शुरुआत साल 1985 से शुरू हुई थी
भारतीय युवा दिवस को 12 जनवरी को मनाने की एक खास वजह भी है। इसी दिन विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था। उनकी जयंती को देश हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है। स्वामी विवेकानंद का युवाओं से गहरा नाता था, इसलिए उनके जन्म दिवस को युवाओं के लिए समर्पित किया गया है।
जानें राष्ट्रीय युवा दिवस को मनाने का कारण
स्वामी विवेकानंद महान समाज सुधारक, दार्शनिक और विचारक थे। उनके दर्शन और विचारों के प्रचार-प्रसार एवं जिन आदर्शों पर उन्होंने काम किया और जिनका जिंदगी में पालन किया, उससे लोगों को अवगत कराना इसका खास मकसद है। वह देश भर के सभी युवाओं के लिए प्रेरणा थे।
वर्ष 1985 में, भारत सरकार ने एक नोट बनाया इस उद्देश्य के साथ कि विवेकानंद की विचारधारा विशेष रूप से युवाओं को प्रेरित कर सकती है और उनके जीवन को आकार देने में मदद कर सकती है। तभी से उनकी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का उद्देश्य
इस दिन रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन के केंद्र और उनकी शाखाओं में बहुत ही उत्साह के साथ कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मंगल आरती, भक्ति के गीत, धार्मिक भाषण, संध्या आरती वगैरा इस मौके पर किए जाते हैं। वहीं स्कूलों और कॉलेजों में भाषण, प्रतियोगिता जैसे विभिन्न कार्यक्रमों और समारोहों का आयोजन किया जाता है।
इसका उद्देश्य भारत के युवाओं में प्रतिभा को बढ़ाने में मदद करना है और उन्हें यह व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करना है कि वे विभिन्न मुद्दों के बारे में कैसा और क्या महसूस करते हैं। राष्ट्रीय युवा दिवस के उत्सव में विभिन्न सम्मेलनों और कार्यक्रमों का आयोजन होता है जिसमें भारत के युवा भाग लेते हैं और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं और स्वामी विवेकानंद के जीवन और कार्यों का जश्न मनाते हैं।
जानें स्वामी विवेकानंद के बारे में
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। वह वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। छोटी उम्र से ही उन्हें अध्यात्म में रुचि हो गई थी। पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद जब वह 25 साल के हुए तो अपने गुरु से प्रभावित होकर नरेंद्रनाथ ने सांसारिक मोह माया त्याग दी और संयासी बन गए। संन्यास लेने के बाद उनका नाम बदलकर विवेकानंद पड़ा। 1881 में विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई। जिसके बाद वे पूरे विश्व में दार्शनिक और विचारक के तौर पर लोगों को प्रेरित करने लगे।
स्वामी विवेकानंद से जुड़ी रोचक बातें
स्वामी विवेकानंद जब लोगों से मिलते थे, तो अक्सर उनसे एक सवाल किया करते थे कि, क्या आपने भगवान को देखा है? इसका सही जवाब किसी के पास नहीं मिला। स्वामी विवेकानंद ने एक बार यही सवाल रामकृष्ण परमहंस से भी किया, जिस पर रामकृष्ण परमहंस जी ने जवाब दिया था, हां मुझे भगवान उतने ही स्पष्ट दिख रहे हैं, जितना की तुम दिख रहे हो, लेकिन मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर पा रहा हूं।
अमेरिका में 11 सितंबर 1893 को धर्म संसद का आयोजन हुआ, जिसमें स्वामी विवेकानंद भी शामिल हुए। यहां उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में ये कहकर की कि ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’।
इस धर्म संसद में उनका भाषण इतना जोरदार था कि, उनके भाषण पर आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में पूरे दो मिनट तक तालियां बजती रहीं। यह घटना आज भी भारत के इतिहास में एक गर्व और सम्मान के तौर पर दर्ज है।
देवघर में भी बीता है स्वामी जी का समय
झारखंड की धरती भी स्वामीजी से अछूती नहीं रही है. उनकी तमाम यात्राओं पर कई शोध हुए हैं. इनमें इसका विस्तार से जिक्र मिलता है कि 1887 से 1890 के दौर में स्वामी जी के कई प्रवास बिहार-झारखंड (तब दोनों एक ही थे) की धरती पर हुए थे.
1887 में स्वामी विवेकानंद ने बाबा वैद्यनाथ के दर्शन भी किए थे. यह वह दौर था जब वह मां काली से भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का वरदान ले चुके थे.
इस दौरान अपने शिष्य प्रियनाथ मुखोपाध्याय की पुरनदाहा स्थित कोठी आनंद कुटीर में वह ठहरे थे. 1898 में अपनी पांचवीं देवघर यात्रा के दौरान भी स्वामी जी का निवास इसी कोठी में रहा था.
यदि हम इस युवा शक्ति का सकारात्मक उपयोग करेंगे तो विश्व गुरु ही नहीं, अपितु विश्व का निर्माण करने वाले विश्वकर्मा के रूप में भी जाने जाएंगे।
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