देश भर में परिवार और समाज में बुजुर्गों की अनदेखी के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। इस लगातार बढ़ते मामलों के बीच असम सरकार ने तस्वीर को बेहतर बनाने की दिशा में एक पहल की है। असम सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को लिए छह और सात जनवरी को दो दिनों की विशेष छुट्टी का ऐलान किया है ताकि वे माता-पिता और ससुराल वालों के साथ वक्त बिता सकें। हालांकि सबूत के तौर पर उनको एक दर्जन तस्वीरें भी पेश करनी होंगी।
जिन कर्मचारियों के माता-पिता या ससुराल वाले जीवित नहीं हैं, वे विशेष अवकाश के हकदार नहीं होंगे।राज्य में तैनात मंत्री, आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी इस छुट्टी का लाभ उठा सकेंगे।
चार साल पहले “प्रणाम” विधेयक पारित किया था
असम सरकार ने करीब चार साल पहले प्रणाम विधेयक पारित किया था । जिसके तहत माता-पिता की देखभाल नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों का वेतन काटने का प्रावधान था।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2050 तक भारत में बुजुर्गों की कुल आबादी 31 करोड़ से अधिक हो जाने की उम्मीद है। हेल्पेज इंटरनेशनल नेटवर्क की ओर से तैयार ग्लोबल एज वाच इंडेक्स में बुजुर्गों के रहने के लिए सबसे बेहतर 96 देशों की सूची में भारत 71 वें स्थान पर था। इससे इस देश और यह के लोगों की मनोस्थिति समझी जा सकती है।
क्या है “प्रणाम” नामक कानून?
असम सरकार पहले ही प्रणाम नामक एक कानून बना चुकी है। जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों के लिए अपने माता-पिता की देखरेख अनिवार्य कर दिया गया है। कानून में ऐसा नहीं करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। उन कर्मचारियों के वेतन का 10-15 प्रतिशत हिस्सा काट कर उनके माता-पिता को दिया जा सकता है।
बढ़ती बुजुर्ग आबादी
भारत में बुजुर्गों की आबादी लगातार बढ़ रही है। हालांकि देश में फिलहाल युवा आबादी ही अपेक्षाकृत ज्यादा है लेकिन तस्वीर में बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि देश में सामान्य आबादी की वृद्धि दर जहां 12 फीसदी है वहीं बुजुर्गों यानी साठ साल के पार लोगों की आबादी 36 फीसदी की दर से बढ़ रही है।अगले दस वर्षों में बुजुर्गों आबादी देश की कुल आबादी का 13 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है।टेक्निकल ग्रुप ऑफ पापुलेशन प्रोजेक्शन इन इंडिया की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएएस) ने वृद्धों पर कुछ समय पहले एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी। इसमें कहा गया था कि 2011-21 के बीच सामान्य आबादी की बढ़ोतरी की रफ्तार 12.4 फीसदी रही है, जबकि इस अवधि में 60 साल पार जनसंख्या 36 प्रतिशत की दर से बढ़ी है।
क्या बताते हैं आंकड़े?
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2001 से 2011 के बीच बुजुर्गों की आबादी में 2.7 करोड़ की वृद्धि हुई।अगले दशक यानी वर्ष 2011 से 2021 के बीच यह वृद्धि 3.4 करोड़ की रही। इसके बाद 2021 से 31 के बीच वृद्धों की आबादी में 5.6 करोड़ की वृद्धि का अनुमान है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में देश में बुजुर्गों की आबादी 13.8 करोड़ हो सकती है। वर्ष 2031 में कुल आबादी का 13.1 फीसदी हिस्सा बुजुर्ग होंगे, जबकि 2021 में यह आंकड़ा 10.1 प्रतिशत है।वर्ष 1961 में महज 5.6 फीसदी आबादी बुजुर्गों की थी।रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राज्यों में बुजुर्गों की आबादी में राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हो रही है।
किस राज्य में सबसे ज्यादा बुजुर्गों को आबादी?
रिपोर्ट में कहा गया है कि बुजुर्गों की सबसे ज्यादा 13 फीसदी आबादी दक्षिणी राज्य केरल में है जबकि सबसे कम 7.7 फीसदी बिहार में। इसके मुताबिक, वर्ष 2031 में जब देश की 13.1 फीसदी आबादी बुजुर्गों की होगी तो केरल और तमिलनाडु में उनकी आबादी लगभग 21 और 18 फीसदी पहुंच जाएगी।
बुजुर्गों के प्रति बढ़ते दुर्व्यवहार के मामले
जैसा कि हम जानते है ऐसी बहुत सी वजहों से देश में बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार के मामले में तेजी आई हैं। परिवार और समाज में उनको उपेक्षा की निगाह से देखा जाता है। यही वजह है कि देश में वृद्धाश्रमों की तादाद भी हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है।
समाजशास्त्रियों का कहना है कि संयुक्त परिवार के विघटन के बाद यह समस्या और गहरी हुई है। छोटे या शहरी परिवारों में बुजुर्गों की स्थिति ज्यादा दयनीय है। बदलते सामाजिक माहौल और पारिवारिक परिस्थितियों ने बुजुर्गों का जीवन और दुश्वार कर दिया है।
उम्र बढ़ने के साथ ही ऐसे लोगों को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से भी जूझना पड़ता है।हाल की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 18 फीसदी से ज्यादा बुजुर्ग अवसाद के शिकार हैं और 70 से 80 साल की उम्र के करीब 45 फीसदी लोगों को कभी ना कभी मनोचिकित्सीय या मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की जरूरत पड़ती है।
असम सरकार की एक अच्छी कोशिश
बुजुर्गों की बढ़ती उपेक्षा के मौजूदा दौर में असम सरकार ने तमाम सरकारी कर्मचारियों के लिए छह और सात जनवरी को दो दिनों की विशेष छुट्टी का ऐलान किया है ताकि वे अपने माता-पिता या ससुराल वालों के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकें।
क्या कहती है असम सरकार?
असम सरकार ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि राज्य सरकार के मंत्रियों को भी अपने माता-पिता या सास-ससुर के साथ समय बिताने का अवसर दिया गया है।आठ और नौ जनवरी को शनिवार और रविवार होने की वजह से कर्मचारियों को लगातार चार दिनों तक अपने परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल जाएगा।जिन कर्मचारियों के माता-पिता या ससुराल वाले जीवित नहीं हैं उनको यह विशेष छुट्टी नहीं मिलेगी।
मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से कहा, “तमाम कर्मचारियों को छुट्टी से लौटने के बाद माता-पिता या ससुराल वालों के साथ समय बिताने के सबूत के तौर पर कम के कम एक दर्जन तस्वीरें जमा करनी होंगी। जो ऐसा नहीं करेंगे उनकी विशेष छुट्टियां आकस्मिक अवकाश में से काट ली जाएंगी।”
To uphold ancient Indian values, I urge Assam Govt employees to spend quality time with their parents/in-laws on Jan 6 & 7, 2022 designated as spl leave.
I request them to rededicate themselves to the cause of building a New Assam & New India with blessings of their parents. pic.twitter.com/hZ2iwbgKoB
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) January 2, 2022
समाजशास्त्रियों ने इस पहल का किया स्वागत
समाजशास्त्रियों ने असम सरकार की इस पहल का स्वागत किया है। लेकिन उनका कहना है कि महज एक राज्य में कानून बनाने से स्थिति में खास सुधार संभव नहीं है। पूरे देश में ऐसा कानून पारित किया जाना चाहिए।कोलकाता के एक कालेज में समाजशास्त्र के प्रोफेसर धनंजय कुमार बागची कहते हैं, “इसके लिए समाज में जागरुकता अभियान चलाना भी जरूरी है। कानून बनाने भर से काम नहीं चलेगा।उसको जमीनी स्तर पर कड़ाई से लागू करना होगा।अक्सर बुजुर्ग अपने पुत्र मोह में उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत करने से बचते हैं।” एक गैर-सरकारी संगठन की संयोजक सुष्मिता मंडल कहती हैं, “बुजुर्गों को वित्तीय रूप से मजबूत बनाना जरूरी है।
सरकार को इसके लिए पेंशन और दूसरी कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने पर विचार करना होगा।बुजुर्गों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठनों, परिवारों और समाज को अपनी भूमिका सही तरीके से निभानी होगी।”
देश के अन्य राज्य का हाल अलग
देश में छोटा परिवार और पति-पत्नी दोनों के कमाऊ होने का चलन जोर दे रहा। परिवार नियोजन के तौर पर एक ही बच्चे को जन्म देने का भी ट्रेंड है। फिर वो चाहे लड़का हो या लड़की। अब अगर ऐसे में वो घर से दूर नौकरी कर रहे हैं तब भी माता पिता खुद को अनदेखा और अकेला महसूस करते हैं। बुढ़ापे में खराब स्वास्थ्य के दौरान उनकी स्थाई देखरेख के लिए कोई नहीं होता और ऐसे में अकेलेपन का एहसास और बढ़ने लगता है। देश में मैटरनिटी लीव और पैटरनिटी लीव का प्रावधान तो है, लेकिन बुजुर्गों की देखभाल के लिए ऐसा कुछ नहीं।
मशाल न्यूज द्वारा झारखण्ड सरकार से अनुरोध
मशाल न्यूज राज्य सरकार से अनुरोध करता है कि जिन लोगों को अपने गंभीर रूप से बीमार माता-पिता की देखभाल के लिए छुट्टी लेनी पड़ती है, वे सैलरी में कटौती या नौकरी खोने पर वित्तीय संकट से गुजरते हैं। उन्होंने अपील की, कि जो लोग अपने माता-पिता या दादा-दादी की सेवा करते हैं, उनका सम्मान किया जाना चाहिए। साथ ही ऐसा बुजुर्गों की देखरेख के लिए अवकाश का प्रावधान भी बनाया जाना चाहिए।जिस तरह मैटरनिटी लीव और पेटरनिटी लीव का प्रावधान है। उसी तरह माह में काम से काम दो दिन बुजुर्ग माता पिता के लिए अवकाश निर्धारित किया जाए।
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