उत्तर प्रदेश की सियासत का वह किस्सा जहां एक बीजेपी नेता मायावती के साथ सियासी समीकरण बनाने की जुगत में लगा था। वह नेता इस प्रयास में लगा था कि मायावती के साथ गठबंधन करके किसी तरह सरकार बनाई जा सके। पर 10 फरवरी 1997 को उस कद्दावर नेता की सियासत ओर जिंदगी दोनों थम गई। उस नेता का नाम था ब्रह्मदत्त द्विवेदी।
सियासत का साल :1997
उत्तर प्रदेश की सियासत में वह साल 1997 था। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था। कोई भी सियासी दल इस हालात में नहीं था कि वह बहुमत सिद्ध करके अपनी सरकार बना सकें। लेकिन कहते हैं ना सियासत की इन्हीं सब उलझनों में नई कहानी जन्म लेती है। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के बीच ब्रह्मदत्त द्विवेदी मायावती के साथ समीकरण दुरुस्त करने में लगे हुए थे ताकि गठबंधन की सरकार बनाई जा सके। लेकिन 10 फरवरी 1997 की सर्द रात को इस कद्दावर नेता की राजनीति और जिंदगी की आखिरी रात साबित हुई।
जनता के चहेते थे ब्रह्मदत्त
ब्रह्मदत्त द्विवेदी उत्तर प्रदेश के वह नेता थे जिन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार कहा जा रहा था लेकिन शायद तकदीर को कुछ और ही मंजूर था। दिवेदी अपने मिलनसार व्यवहार के चलते सभी के प्रिय नेता थे, जनता के बीच उनकी पैठ भी अच्छी गहरी थी। पार्टी का हर नेता उनकी इज्जत करता था। ब्रह्मदत्त द्विवेदी 90 के दशक में बहुत तेजी से उभरे और अपनी सियासी सफलताओं के चलते पार्टी में बड़े नेताओं के बेहद करीब हो गए थे। उनको अटल- आडवाणी से लेकर पार्टी का हर छोटा बड़ा कार्यकर्ता जानता था।
थे बाजपई के प्रिय
कवि, वकील और जनता के नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी को पहचान राम मंदिर के आंदोलन के वक्त मिली। गेस्ट हाउस कांड के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई भी उनके सियासी और कूटनीतिक कौशल के मुरीद को गए थे। लेकिन इस नेता की जिंदगी और सियासत का सफर 10 फरवरी 1997 की रात में तब थम गया जब वह एक कार्यक्रम से अपने शहर फर्रुखाबाद वापस आ रहे थे।
क्या हुआ था 10 फरवरी 1997 की रात
किसे मालूम था यह रात ब्राह्मण दत्त द्विवेदी के सफर और जिंदगी की आखिरी रात होने वाली थी। 10 फरवरी 1997 को ब्राम्हण दत्त द्विवेदी एक कार्यक्रम से अपने शहर फर्रुखाबाद वापस लौट रहे थे तभी कुछ बाइक सवार बदमाश आए और उनकी गाड़ी पर फायरिंग करने लगे। कार में बैठे ब्राह्मण दत्त द्विवेदी जब तक कुछ समझ पाते उससे पहले ही उनको गोलियों से छलनी कर दिया गया। जब उत्तर प्रदेश के सीएम पद के दावेदार नेता की हत्या की खबर देश को मिली तो सनसनी मच गई।
कई कद्दावर नेता हुए थे अंतिम यात्रा में शामिल
ब्राह्मण दत्त द्विवेदी के मौत के बाद उत्तर प्रदेश की आवाम सड़क पर थी। सभी अपने इस चहेते नेता को श्रद्धांजलि देना चाहते थे। अटल-आडवाणी, मुरली मनोहर जैसे कद्दावर नेता भी इस नेता की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। बाद में मामले में द्विवेदी के परिवार ने चार लोगों पर नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई। इस रिपोर्ट में शहर के विधायक विजय सिंह के अलावा तीन और अज्ञात लोगों के नाम थे। उसके बाद पुलिस ने विजय को दिल्ली में पकड़ लिया, और उनके साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
क्या हुआ कत्ल के आरोपियों का
कोर्ट में मुकदमा चला,आखिरकार इस मुकदमे में साल 2003 में फैसला आया और विजय समेत दो अन्य आरोपियों को आजीवन उम्र कैद की सजा सुनाई गई। बाद में विजय जमानत पर भी छूटे लेकिन 2017 में सीबीआई की सजा को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने उन्हें फिर जेल भेज दिया। दूसरी तरफ इस मामले में सबूतों के अभाव में दूसरे आरोपी छूट गए।
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