रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने गुरुवार को बताया कि साल 2021 में 46 पत्रकार मारे गए और दुनियाभर में इस वक्त 488 मीडियाकर्मी जेलों में बंद हैं।अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स हर साल पत्रकारों को लेकर अपनी रिपोर्ट जारी करती है।उसके मुताबिक पिछले 25 सालों में मारे गए पत्रकारों की संख्या इस साल सबसे कम है।
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सबसे ज्यादा महिला पत्रकार हिरासत में
आरएसएफ ने कहा कि उसने कभी भी इतनी अधिक महिला पत्रकारों को हिरासत में नहीं देखा है, जिनकी कुल संख्या 60 है। चीन 127 पत्रकारों को जेल में बंद करने के साथ सबसे ऊपर है। हांग कांग में चीनी सरकार की कार्यवाही भी तेज हुई है।इसी साल जून में लोकतंत्र समर्थक अखबार ऐपल डेली के दफ्तर पर छापे मारे गए और उसके संपादकों व पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया।उसके बाद अखबार बंद हो गया था।म्यांमार में भी 53 पत्रकारों को जेल में बंद किया गया, इसके बाद विएतनाम में 43, बेलारूस में 32 और सऊदी अरब में 31 पत्रकार जेलों में डाले गए।
भारत में ज्यादातर पत्रकारों पर राजद्रोह का कानून
भारत में भी कई पत्रकारों के ऊपर मामले दर्ज होते आए हैं। कई पत्रकारों को रिपोर्टिंग के लिए गिरफ्तारी तक का सामना करना पड़ा है। राज्य सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों पर हमले तक हुए हैं।पत्रकारों के ऊपर राजद्रोह जैसे गंभीर मामले लगाने पर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है।
क्यों जेल में डाले जा रहे है पत्रकार
अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित एक संस्था का कहना है कि पत्रकारों को जेल में डालने का कारण अलग-अलग देशों में भिन्न है। संस्था के मुताबिक यह रिकॉर्ड संख्या दुनिया भर में राजनीतिक उथल-पुथल और स्वतंत्र रिपोर्टिंग को लेकर बढ़ती असहिष्णुता को दर्शाती है।
दानिश सिद्दीकी भी 2021 में मारे गए
भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी अफगान सुरक्षाबलों के साथ पाकिस्तान से सटी अहम सीमा चौकी के पास तालिबान लड़ाकों के साथ संघर्ष को कवर रहे थे।16 जुलाई 2021 को तालिबान ने उनकी हत्या की थी। 2021 में ही मेक्सिको के पत्रकार गुस्तावो सांचेज कैबरेरा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
मीडिया का मुंह बंद करने का हथियार बनता राजद्रोह कानून
इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से इसे जारी रखने के औचित्य पर सवाल पूछा था। उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज राजद्रोह का मामला रद्द करने का आदेश दिया था।लेकिन बावजूद इसके केंद्र और राज्य सरकारें लगातार इस कानून को अपने हित में इस्तेमाल करती रही हैं।
क्या है राजद्रोह कानून की धारा 124ए
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार, जब कोई व्यक्ति बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या भारत में क़ानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी है।
कितनी सजा है
राजद्रोह एक ग़ैर-जमानती अपराध है।इसमें सज़ा तीन साल से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना है।
कितनों को सजा हुई और कितने बरी
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2015 में 30, 2016 में 35, 2017 में 51, 2018 में 70 और 2019 में 93 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए।2019 में देश में जो 93 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए।96 लोगों को गिरफ़्तार किया गया।
क्या इस कानून को खत्म कर देना चाहिए
पिछले कुछ सालों से इस बात पर बहस चल रही है कि क्या देशद्रोह कानून को खत्म कर देना चाहिए। जुलाई 2019 में राज्य सभा में एक प्रश्न के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा, “देशद्रोह के अपराध से निपटने वाले आईपीसी के तहत प्रावधान को ख़त्म करने का कोई प्रस्ताव नहीं है”। सरकार ने कहा, “राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए प्रावधान को बनाए रखने की जरूरत है।”
हालांकि कानून के जानकार साफ कहते हैं कि ऐसी धारा होनी ही नहीं चाहिए। इस क़ानून का क़ानून की किताब में होना ही इसके दुरुपयोग को जन्म देता है। ब्रिटिश राज में बनाये गए इस कानून की मंशा तब भारतीय आजादी की लड़ाई लड़ रहे लोगों को किसी भी तरह कुचलने की थी। उसमें ये कानून उनके लिए मददगार था। ऐसे कानून को अब दुनियाभर से खत्म किया जा रहा है।
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