
लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान ने भारत के नागरिकों से मौजूदा राष्ट्रीय परिस्थिति में सचेत और संयत सक्रियता निभाने की अपील की है।
लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान की ओर से संयोजक आनंद कुमार ने पहलगाम आतंकी घटना, उसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के माहौल तथा युद्धविराम के बाद की परिस्थितियों पर अपना मंतव्य व्यक्त किया है।
राज्यपोषित आतंक ज्यादा मारक और घातक होता है – प्रो. आनंद कुमार
प्रो. आनंद कुमार ने कहा है कि भारतीय नागरिकों को हर आतंकी घटना के खिलाफ दृढ़ता से खड़े रहना है। आतंक राजनीतिक तरीका नहीं बल्कि आपराधिक तरीका है। इसका इस्तेमाल राज्य और गैरराज्य दोनों तरह की शक्तियां करती हैं, लेकिन राज्यपोषित आतंक ज्यादा मारक और घातक होता है। दो देशों के बीच तनाव या टकराव का समाधान सैनिक कार्रवाई या युद्ध कभी नहीं हो सकता । यह समाधान अंतरराष्ट्रीय कानून और मान्यताओं के दायरे में रहकर राजनीतिक संवाद से ही हो सकता है।
सही नागरिक बोध वही है..
सचेत और जिम्मेदार नागरिक बोध ही ऐसे संकटग्रस्त और जटिल वातावरण में किसी राष्ट्र को सही दिशा दे सकता है। सरकारें और राजनीतिक दल तो अपने संकीर्ण सत्ता स्वार्थ में अपनी भूमिकाएं तय करते रहते हैं। सही नागरिक बोध वही है जो सारे नागरिकों को समान समझे, अपने पूर्वाग्रहों या अन्य किसी कारण से नागरिकों के किसी हिस्से को दोयम या शत्रुभाव से नहीं देखे। धर्म, भाषा और क्षेत्रीय पैमानों पर देश के प्रति लगाव को आकलित और विभाजित न करे। नागरिकों को विभाजित करना देश को कमजोर करना है।
पहलगाम की आतंकी घटना
पहलगाम की आतंकी घटना भारत विरोधी राजनीतिक उद्देश्य के तहत किया गया हत्याकांड थी। पर्यटकों के सुरक्षा इंतजाम के अभाव के कारण आतंकियों का हत्यारा हौसला बढ़ा। सुरक्षा बंदोबस्त होने पर ऐसी भीषण घटना न होती। आनंद मना रही इतनी जानें नहीं जातीं। ये मौतें दुखद हैं, आतंक की यह घटना निंदनीय और दंडनीय है तथा सुरक्षा की नाइंतजामी भी अनिवार्य जांच और कार्रवाई मांगती है। कश्मीर में ही कुछ साल पहले पुलवामा में बहुत बड़ी आतंकी घटना हुई थी। बहुतेरे सवालों के बावजूद उस पर आज तक जांच नहीं हुई। उस वक्त उस घटना का भरपूर चुनावी इस्तेमाल भी हुआ। आज तक देश से लगाव रखनेवाली, सेना का सम्मान करनेवाली जनता पुलवामा में हुई घटना के कारणों से अनजान है।
पुलवामा प्रकरण पर बरती गयी गैरजिम्मेदारी
सरकारी स्तर पर हुई सुधारनीय चूकों की आज तक आत्मस्वीकृति नहीं है। यह जवाबदेही का उल्लंघन है। सरकार ऐसी घटनाओं पर देश के सवालों के प्रति जवाबदेही, समग्र जांच और उसे देश के सामने रखने के दायित्व से बंधी हुई है। पुलवामा प्रकरण पर बरती गयी गैरजिम्मेदारी और पहलगाम में जारी सुरक्षा चूक केन्द्र सरकार की रक्षा रणनीति पर उठते रहे सवालों को और बड़ा कर गयी है। अब तक इस दिशा में कुछ नहीं किया गया है। लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान का मानना है कि इस चूक की जांच सरकार करे और अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करे।
पारदर्शी तरीके से बात
इस आतंकी घटना पर सरकार की भूमिका अधूरी और असंतुलित रही। उसे पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने के पहले या साथ साथ सुरक्षा चूक की जिम्मेवारी लेनी चाहिए थी, जांच का निर्णय घोषित करना चाहिए था, सर्वदलीय बैठक में सुरक्षा चूक के बारे में पारदर्शी तरीके से बात करनी चाहिए थी। यह करना तो दूर , पूरे देश में खासकर चुनावी रूप से संवेदनशील बिहार में इस मुद्दे पर मुखर सरकार के सरगना प्रधानमंत्री अपनी ही सरकार द्वारा बुलायी गयी सर्वदलीय बैठकों में नहीं आये। उनकी अनुपस्थिति इस अतिमहत्वपूर्ण विषय पर सरकार की अगंभीरता तथा संसदीय दलों के प्रति उपेक्षा का भाव व्यक्त करती है। देश के प्रधानमंत्री का यह बरताव भी गंभीर सवालों के घेरे में है।
खोखलापन और बड़बोलापन
पहलगाम की यह घटना पहले की कुछ घटनाओं के साथ मोदी सरकार की कश्मीर हस्तक्षेप नीति और उसके साथ घोषित दावों का खोखलापन बड़बोलापन बताती है। धारा 370 और 35(A) हटाने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि इससे कश्मीर में आतंकवाद का खात्मा हो गया है। लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान का गृहमंत्री अमित शाह समेत पूरे सरकार से सवाल है कि क्या वे अब अपनी जाहिर विफलता को लोकतांत्रिक विनम्रता के साथ सार्वजनिक रूप से स्वीकार करेंगे? क्या पहलगाम में केन्द्र सरकार अधीन प्रशासनिक व्यवस्था की अक्षमता को देखते हुए जम्मू-कश्मीर को तत्काल पूर्ण प्रांत का दर्जा बहाल करना विवेक और नैतिकता का तकाजा नहीं है?
आतंकी गिरोह पाकिस्तान सरकार के अभिन्न हिस्से नहीं हैं। वे ज्यादा से ज्यादा पाकिस्तान सरकार या उससे भी ज्यादा पाक सेना से संरक्षित और सहयोगित हैं। पाकिस्तान के अवाम को आतंकी नहीं माना जा सकता। इस कारण आतंकी घटना के जवाब में उन पर हमला नहीं किया जा सकता , उनका जीवन दूभर नहीं किया जा सकता। इस समझ से आनन-फानन में सिंधु जल संधि को स्थगित करने की कार्रवाई सही नहीं। यह कुछ अपराधियों के लिए पूरे गांव को सामूहिक सजा देने की बेतुकी और जनविरोधी समझ की अंधी नकल है।
पहलगाम आतंकी घटना और कश्मीरियों की सराहनीय आतंक-विरोधी जांबाजी को आतंकवाद के खिलाफ एक मानवीय नागरिक एकता का माध्यम बनाया जा सकता था। उसकी जगह भाजपा और संघ दीक्षित उग्रजनों ने इस हमले के विरोध की दिशा कश्मीरी मुसलमान और आमतौर पर भारतीय मुसलमान के खिलाफ सांप्रदायिक भावना को भड़काने के लिए की। मुस्लिमों पर चले गैंग लिंचिंग ने आतंक-विरोधी धर्मनिरपेक्ष भारतीयता अभियान की संभावना को धुंधला कर दिया।
सरकार ने अपनी विफलता से ध्यान बंटाने के लिए पाकिस्तान विरोधी सैन्य कार्यवाही का शमां बाधा। उनसे यह अपेक्षित ही था। विपक्षी दलों का उनके साथ युद्धसमर्थक कदमताल अनपेक्षित था। युद्ध विरोधी परंपरा के वामपंथी दलों का युद्ध समर्थक स्वर दुखद रहा।
सैन्य अभियान को एक विशेष धार्मिक प्रतीक से जुड़ा नाम देना धर्मनिरपेक्ष और समुदायनिरपेक्ष देशप्रेम की अवधारणा पर आघात करनेवाला रहा। यह प्रतीक सिर्फ धार्मिक ही नहीं है, प्रतिगामी है, आंचलिक सांस्कृतिक वर्चस्व वाला है और पितृसत्तात्मक भी है।
इस सैन्य कार्रवाई में दोनों देश के निर्दोष नागरिकों की जानें गईं। इन मौतों को रोका जा सकता था, कम किया जा सकता था। सैन्य अभियान के पहले ही सीमावर्ती गांव से लोगों को हटा लेना चाहिए था। लेकिन भारत सरकार की ओर से इतनी सामान्य सावधानी भी नहीं बरती गई।
सैन्य कार्रवाई के दौरान गैरजिम्मेदार टीवी एंकरों, अखबारी रिपोर्टर्रों और नफरतजीवी मीडियाबाजों ने झूठ और उत्तेजना का भीषण माहौल रचा। सरकार और प्रशासन की भूमिका तो पक्षपाती और समाज-विरोधी रही। वाजिब सवाल करने वाले, गड़बड़ियों की आलोचना करने वाले मीडियाकर्मियों पर रोक लगी , मामले दर्ज हुए। लेकिन झूठ और नफ़रत फैलानेवालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रशासन का यह रूख अराजकता,अशांति और अपराध को एक तरह से मदद करता है।
कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की ही तरह भारत सरकार भी लगातार अमेरिकी सरकार के संपर्क में थी। वे अपने हर कदम की जानकारी अमेरिकी शासन को दे रहे थे। संभवतः अमेरिका को अपने पक्ष में रखने की कोशिश कर रहे थे। वे दूसरे की अपेक्षा अपने लिए अमेरिका से ज्यादा सरपरस्ती चाहते थे। इस कमजोरी का फायदा अमेरिकी शासन ने पूरी तरह उठाया। आरंभ में इस तनाव को भारत और पाकिस्तान का आंतरिक मामला बताने वाला बयान आगे के दिनों में डोनाल्ड ट्रंप के दादागिरी किस्म के दखलंदाजी वाले बयानों में बदल गया। ट्रंप और उनके सहयोगियों ने युद्धविराम का ही नहीं, आणविक युद्ध की संभावना से भी बचाने का नोबेल दावा ठोंकना जारी रखा। और हमारे प्रधानमंत्री, विदेशमंत्री, रक्षामंत्री और सभी मंत्रियों की चौहद्दी लांघते रहनेवाले गृहमंत्री इस दावे पर चुप्पी साधे रहे। इस तरह भारत की संप्रभुता की छवि की जितनी फजीहत हुई , वैसी कभी नहीं हुई। लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान मोदी सरकार की भारत-विरोधी अमेरिकापरस्ती के रवैये की स्पष्ट आलोचना करता है। आगे ऐसे रवैये से मुक्त होकर स्वतंत्र एवं सशक्त भारत की डिप्लोमेसी पर चलने का साहस दिखाने की उम्मीद करता है।
युद्धोन्माद उबालकर हड़बड़ी में हमले पर उतर आयी सरकार के हड़बड़ी और शायद बाहरी दबाव में युद्धविराम करने पर छवि की क्षति होनी ही थी। अपनी परतंत्र और कमजोर छवि बनती देख प्रधानमंत्री ने एक नया आत्मघाती कदम उठाया। उन्होंने एक नए युद्ध सिद्धांत की घोषणा की कि जब भी भारत की धरती पर आतंकी घटना होगी, जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान पर हमले होंगे। उन्होंने युद्धविराम को मात्र स्थगन बताकर फिर से वातावरण को पैनिक बना दिया है।
देशप्रेमी भारतीयों को अब यह समझ लेना चाहिए कि मोदी सरकार की असल आकांक्षा अमेरिका के अधीनस्थ सहयोगी के रूप में रहते हुए क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में मान्य होने की है। अमेरिकी नेतृत्व वाले ‘क्वाड’ समूह में शामिल होना इसी आकांक्षा का प्रतिफल है। इस सरकार का ताजा मकसद अर्थव्यवस्था का ज्यादा हथियारीकरण करना है। भारत हथियारों का सबसे बड़ा आयातक बन गया है। भारतीय कॉरपोरेट इसराइल और अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से घरेलू स्तर पर हथियार निर्माण की दिशा में बढ़ रहे हैं। सतत जनदबाव बना कर इस दिशा को रोकना एक नागरिक दायित्व है।
सोशल मीडिया पर लगायी गयी सभी अलोकतांत्रिक पाबंदियां समाप्त करने की जरूरत है। फर्जी और नफरत की खबरों और भाषणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है।
बहत सारे राजनीतिक दल इस मुद्दे पर जानकारी और बहस के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग करते रहे। सरकार ने इस मांग की अवहेलना की। मोदी सरकार का यह बरताव संसदीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अपमान तो है ही, उसकी कमजोरी और उठाये गये कदमों के प्रति विश्वास का अभाव भी जाहिर कर जाता है। संसद का विशेष सत्र बुलाना एक जरूरत थी। अतीत में ऐसी स्थितियों में तत्कालीन केन्द्र सरकार ने अपनी पहल से ऐसे सत्र बुलाये थे। संसद का सत्र न बुलाना हास्यास्पद और बेतुका भी है। गौरतलब है कि इस दौरान पाकिस्तान में संसद चलती रही, बहस होती रही। मोदी सरकार एक ओर विपक्षी दलों का संसद में सामना करने से बच रही है। दूसरी ओर विपक्षी दलों के सांसदों को अपने पक्ष में बात रखने के लिए विभिन्न देशों में भेज रही है। इस प्रकरण पर भी वह या तो डरी हुई है या मनमानेपन पर उतरी हुई है। सही यह होता कि वह इन दलों से प्रतिनिधि मांगती। अपनी ओर से अपेक्षित सांसदों का नाम सुझाती और आग्रह करती। पहलगाम घटना से लेकर अभी तक की परिस्थितियों पर संसद के विशेष सत्र की जरूरत अब भी है। लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान सत्र बुलाने और सारे तथ्यों का खुलासा देश के सामने करने और उठ रहे सवालों का जवाब देने की मांग मोदी सरकार से करता है।
लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान इस माहौल में कुछ बुनियादी राष्ट्रसूत्र या नागरिकसूत्र चिन्हित करना जरूरी समझता है। राष्ट्र या देश और सरकार एक या समान नहीं है। देश नागरिकों से बनता है। हर नागरिक राजनीतिक पैमाने पर समान अधिकार का हकदार है। सरकार से असहमति और सरकार के कामकाज पर सवाल देश का विरोध नहीं, बल्कि देश और लोकतंत्र के लिए सकारात्मक है। हर सरकार अपने को देश के बराबर बनाने बताने की सनक में रहती है। अपनी राय को कानून के बराबर समझती समझाती है। मोदी सरकार तो इस निरंकुश रवैये के शिखर पर जा बैठी है। अभी तक उसके अंधसमर्थक भारी तादाद में हैं। लेकिन यह समर्थन लगातार दरक रहा है।
आज के युद्धोन्मादी और हिंसक द्वेष के दौर में गैरजिम्मेदार और जनविरोधी सरकार के खिलाफ नागरिकों को ज्यादा गंभीर और एकजुट तरीके से सवाल खड़ा करने की जरूरत है। देशों के बीच विशेषकर पड़ोसी देशों के बीच मित्रता और सहकार की जरूरत हमेशा रहती है। देशों के नागरिकों के बीच नागरिक अधिकारों और नागरिकों की बुनियादी जरूरतों पर संवाद की जरूरत है। दुनिया भर के आम नागरिक शासकों की नीतियों के कारण बदहाल और गरीब हैं। शासक जन असंतोष से ध्यान भटकाने के लिए कभी विकास की नकली चकाचौंध पैदा करते हैं और कभी दुश्मनी का उन्माद भरते हैं। यह समझने की जरूरत है कि भारत और पाकिस्तान की जनता की स्थिति एक सी है। उनकी बदहाली एक सी है । उनकी गैरबराबरी और गरीबी एक सी है। उनके जीवन के मुद्दे एक से हैं। उन पर हुकूमत के हमले एक से हैं। कोई अचरज की बात नहीं , अगर कभी उनके शासक आपस में राय मशविरा कर युद्ध लड़ने लगें। भारत में शीर्ष एक प्रतिशत लोगों के पास देश की 42% सम्पत्ति है। नीचे की आधी जनसंख्या के पास केवल तीन प्रतिशत धन संपत्ति है। पाकिस्तान में सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास वहां की 30% से अधिक धन संपत्ति है। 50% लोगों के पास केवल चार प्रतिशत धन संपत्ति है। विश्व भर के 112 देशों में सरकारी पैमाने पर तय 1 अरब 10 करोड़ लोग गरीबी में रह रहे हैं। यह विश्व की जनसंख्या का 18% है। दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब भारत में हैं। 23 करोड़ 40 लाख । ऐसे वक्त में हमें शासकों की युद्धयुक्तियों की जगह नागरिकों की बुनियादी जरूरत को पूरा करने के जोशीले जनअभियान की जरूरत है। और यह दूसरे देशों को या कुछ खास देशों को दुश्मन समझने और बनानेवाले अंधराष्ट्रवादी भावना से नागरिकों के मुक्त होते जाने के साथ ही मजबूत हो सकता है।
लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान एक बार फिर दुहराता है कि हम पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए लोगों के परिजनों की संवेदना के साथ हैं। हम आतंकियों के खिलाफ जूझने वाले बहादुर कश्मीरियों को सच्चा भारतीय और अपना मित्र मानते हैं। हम ऐसे शानदार कश्मीरी मित्रों से मिलने , साथ साथ आनन्द मनाने के लिए कश्मीर चलें की मुहिम पर चलना चलाना चाहते हैं। हम पुलवामा और पहलगाम की सुरक्षा चूकों पर सरकार का जवाब मांगते हैं। हम आत्मघाती युद्धोन्मादी और नफरती बयानों ,भाषणों और भारतीय मुसलमानों पर हुए हमलों की भर्त्सना करते हैं और दोषियों पर कार्रवाई की मांग करते हैं। हम सरकार और नफ़रती लोगों से असहमति जतानेवाले लोगों पर लदे झूठे मुकदमे और गलत पाबंदियां हटाने की मांग करते हैं।

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
Join Mashal News – JSR WhatsApp
Group.
Join Mashal News – SRK WhatsApp
Group.
सच्चाई और जवाबदेही की लड़ाई में हमारा साथ दें। आज ही स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें! PhonePe नंबर: 8969671997 या आप हमारे A/C No. : 201011457454, IFSC: INDB0001424 और बैंक का नाम Indusind Bank को डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर कर सकते हैं।
धन्यवाद!