
फासीवादी तानाशाही के विरुद्ध मेहनतकश महिलाओं ने 8 मार्च 1917 को क्रांति का बिगुल फूंका था
झारखंड की सैकड़ों महिलाओं ने आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक नेतृत्व के अधिकार का क्रांतिकारी दावा बुलंद किया। सम्मेलन में पाकुड़,देवघर, हजारीबाग, चतरा, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, खूंटी, बोकारो, पूर्वी सिंहभूम, रांची और अन्य जिलों से महिलाएं आयीं थीं।
8 मार्च के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में झारखंड जनाधिकार महासभा व कई संगठन मिलकर रांची में महिला अधिकार सम्मेलन का आयोजन किए। सम्मेलन का मुख्य विषय “समाज, अर्थ और राजनीति में समानता के हक की दावेदारी” था। सम्मेलन में राज्य के विभिन्न जिलों से विभिन्न संगठनों की 200 महिला प्रतिनिधियों ने मिलकर आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक नेतृत्व के अधिकार का क्रांतिकारी बिगुल दिया।
महिलाओं की क्रांति का इतिहास
सम्मेलन की शुरुआत में लीना और रिया तुलिका पिंगुआ ने सब को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की क्रांति के इतिहास को याद दिलाया। 100 साल पहले एक ओर अमरीका और यूरोप में महिलाएं वोट के सार्वजनिक अधिकार और बराबर रोजगार के अधिकार के लिए संघर्ष कर रही थी. वहीं दूसरी ओर रूस में विश्व युद्ध, भूख और वहां के राजा (ज़ार) के फासीवादी तानाशाही के विरुद्ध मेहनतकश महिलाओं ने 8 मार्च 1917 को क्रांति का बिगुल फूंका था। इन सभी संघर्षों के कारण 8 मार्च पूरी दुनिया के लिए महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक बन गया। किरण ने सम्मेलन की विषय भूमि रखी।
महिलाओं ने अपने निजी जीवन, परिवार व समाज में बराबरी के अधिकार के लिए लगातार संघर्ष को साझा की
सम्मेलन में आई महिलाओं ने अपने निजी जीवन, परिवार व समाज में बराबरी के अधिकार के लिए लगातार संघर्ष को साझा की। महिला कवि जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि समाज, धर्म और पुरुष महिलाओं को घेर के रखते हैं। पितृसत्ता को खत्म करने के लिए महिलाओं को इन सब पर सवाल करना होगा। अनेक वक्ताओं ने कहा कि आज भी महिला को सामाजिक स्तर पर किसी पुरुष के परिप्रेक्ष्य में महज़ माँ, बहन या पत्नी के रूप में ही देखा जाता है। महिलाओं को अधिकारों से वंचित रखने में पुरुष, परिवार और समाज की अहम भूमिका होती है। शोधकर्ता नसरीन आलम ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 32% महिलाओं ने घरेलू हिंसा से पीड़ित रही हैं।
समाज में एकल महिलाओं को बहुत तरह के शोषण का सामना करना पड़ता है – कौशल्या देवी
सम्मेलन में आई महिलाओं ने इन चुनौतियों से लड़ने के अनुभव को साझा किया। एकल नारी सशक्ति संगठन की कौशल्या देवी ने कहा कि समाज में एकल महिलाओं को बहुत तरह के शोषण का सामना करना पड़ता है, जिसके विरुद्ध उनका संगठन लगातार संघर्ष कर रहा है कुछ धार्मिक संगठनों से जुड़ी महिलाओं ने कहा कि धर्म ने तो महिलाओं के निजी जीवन और सामाजिक स्थिति को सीमित दायरों में बांध के रखा है. धार्मिक व्यवस्था में भी महिलाओं के लिए नेतृत्व में आना एक बहुत बड़ी चुनौती है। हर समाज में सत्ता पुरुषों के पास ही रहता है।
गैर-बराबरी का एक मुख्य कारण है संसाधनों व अर्थ पर नियंत्रण न होना
अनेक महिलाओं ने कहा कि गैर-बराबरी का एक मुख्य कारण है संसाधनों व अर्थ पर नियंत्रण न होना। आर्थिक रूप से महिलाओं के श्रम का घर में और घर के बाहर (जैसे कंपनी, बाज़ार, खेती-मज़दूरी आदि) व्यापक शोषण होता है। झामुमो से जुड़ी रजनी मुर्मू ने कहा कि जमीन पर अधिकार न होना आदिवासी महिलाओं का गैर-आदिवासियों से अक्सर पिछड़ जाने का एक बड़ा कारण है।
महिला अधिकारों पर मंडरा रहा है गहरा संकट – नंदिता भट्टाचार्य
एपवा की नंदिता भट्टाचार्य ने महिला अधिकारों पर मंडरा रहे गहरे संकट को याद दिलाया। आरएसएस और भाजपा देश को संवैधानिक मूल्यों के विपरीत हिन्दू राष्ट्र और कॉर्पोरेट राज बनाने पर तुले हैं। जहां एक ओर हिन्दू राष्ट्र में महिलाओं की ज़िन्दगी हिंदुत्व और वर्ण व्यवस्था पर आधारित होते जा रही है। उनके बोलने और सोचने की आज़ादी पर अंकुश बढ़ते जा रहे हैं. वहीं, कॉर्पोरेट पूंजीवादी राज में महिलाएं अपने जल, जंगल, ज़मीन से वंचित शोषित मज़दूर बनी रहेंगी।
एडवा की वीना लिंडा ने कहा कि केंद्र सरकार महिलाओं को संसद व विधान सभा में आरक्षण देने का ढोंग कर रही है। इसको लागू करवाने के लिए महिलाओं को आंदोलन करना होगा।
आज झारखंड में केवल 10-15% विधायक महिला हैं, जबकि ..- दयामनी बारला
आदिवासी नेत्री दयामनी बारला ने कहा कि झारखंड राज्य बनाने में महिलाओं ने व्यापक संघर्ष किया था, लेकिन राज्य बनने के बाद पुरुष यह भूल गए। साथ ही, उन्होंने राजनीति में महिलाओं के लिए चुनौतियों को साझा किया। एक महिला को विधायक के लिए टिकट मिलना या जनता का समर्थन मिलना, यह एक बड़ी लड़ाई है। आज झारखंड में केवल 10-15% विधायक महिला हैं, जबकि कम-से-कम 50% सीटों पर महिलाओं का अधिकार होना चाहिए।
कुमुद ने कहा कि महिलाओं के संघर्षों से समाज, धर्म, राजनीति और आर्थिक व्यवस्था में पितृसत्ता को लगातार चुनौती मिली है। अनेक अधिकार भी जीते गए हैं।
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रोकने में महिलाओं की अहम भूमिका थी – एमेलिया
केन्द्रीय जन संघर्ष समिति की एमेलिया ने कहा कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रोकने में महिलाओं की अहम भूमिका थी। कांग्रेस नेत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि राजनीति में संघर्षशील महिलाओं के आवाज़ों को अक्सर दबा दिया जाता है। आने वाले दिनों में महिलाओं को आपसी प्रतिस्पर्धा में न समय बर्बाद कर संगठित होकर पितृसत्ता और अर्थ, समाज और राजनीती में बराबरी के अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
सम्मेलन के अंत में सभी प्रतिभागियों ने इन मांगों के साथ संकल्प पारित किया
1) महिलाओं के लिए हर स्तर के नौकरी में कम-से-कम 50% आरक्षण लागू किया जाये. लैंगिक समता के लिए विशेष लैंगिक नीति बनाई जाए और उसे हर स्तर पर लागू किया जाए। महिला आयोग पुनर्जीवित किया जाए। समलैंगिक समेत सभी ट्रांसजेंडर व क्वीयर व्यक्तियों का हर मौलिक अधिकार व सरकारी योजनाओं में बराबरी सुनिश्चित हो।
2) हिंसा से प्रभावित राज्य की सभी महिलाओं के लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर (OSCC) सक्रिय किया जाये। मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए सम्पूर्ण पुनर्वास व्यवस्था सुनिश्चित किया जाये।
3) राज्य में कम से कम 50% विधायक महिला हो। राजनैतिक पार्टियों के हर स्तर की समितियों और नेतृत्व में कम से कम 50% महिलाएं हो। सामाजिक व गैर पार्टी संगठनों से भी अपील हैं कि नेतृत्व में महिलाओं का अधिकार सुनिश्चित किया जाये।
4) महिलाओं को सम्मानजनक मजदूरी एवं कार्यक्षेत्र में बराबरी का अधिकार सुनिश्चित हो। असंगठित क्षेत्र की महिलाओं के सम्पूर्ण मातृत्व अधिकार – मातृत्व अवकाश, सम्मानजनक मातृत्व लाभ, कार्यस्थल पर पालना की व्यवस्था – सुनिश्चित हो।
5) परिवार और समाज से भी अपील है की लड़कियों को बिना किसी भेदभाव के हर क्षेत्रों में समान अवसर और बेहतर सुविधाएं दें खासकर शिक्षा , स्वास्थ्य, पोषण, खेलकूद और रोजगार के क्षेत्रों में।
सम्मेलन का संचालन एलिना होरो, लीना, और रिया तुलिका पिंगुआ ने किया। दयामनी बरला, एमेलिया,जसिंता केरकेट्टा,गीताश्री उरांव,गीता तिर्की,कौशल्या देवी ,किरण, कल्याणी मीणा, कुमुद, मीना मुर्मु, नसरीन जमाल, रेशमा, सेलिना लकड़ा,सुनीता लकड़ा, शशि रीता, सुहासिनी महली,स्वाति शबनम, तारामणि साहू, वीणा लिंडा,रजनी मुर्मु समेत कई महिलाओं ने अपनी बात रखी।
सम्मेलन में आदिवासी विमेंस नेटवर्क, एकल महिला सशक्ति संगठन, एडवा, एपवा, नारी शक्ति क्लब, समेत अनेक संगठनों एवं कई जिलों की प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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