
जुटे तीन राज्यों के कई सामुदायिक व जन संगठनों के कार्यकर्त्ता
लगे कई पारंपरिक आदिवासी व्यंजनों, बीज, पुस्तकों के स्टॉल नेतरहाट और चांडिल बांध आंदोलन से जुड़े पोस्टर्स आदि लगे
सामाजिक संस्था श्रुति, नई दिल्ली के 40 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में झारखण्ड की राजधानी रांची में एक अंतर्राज्यीय जन-सांस्कृतिक समागम का विशाल एवं भव्य आयोजन 2 मार्च’ 2025 को किया गया. इसमें मुख्य रूप से झारखण्ड समेत ओड़िशा और छतीसगढ़ के जन संगठनों द्वारा सृजित गीतों के लोकार्पण के साथ-साथ लोक-नृत्य, नाट्य-मंचन और आदिवासी व्यंजनों का भरपूर लुत्फ़ उठाया गया. इसके अलावे आदिवासी कला-संस्कृति के विभिन्न स्टाल लगाए गए, जहाँ तीनों राज्यों को समझने का लोगों को अवसर मिला.
इस अवसर पर चांडिल बांध आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ नेतृत्व कारी सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद अंजुम और श्यामल मार्डी तथा नेतरहाट आंदोलन का शुरुआती दौर में नेतृत्व करने वाले वरिष्ठ नेताओं को मंच अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
विशेष रूप से कार्यक्रम का ख़ास आकर्षण रहे ICUF (छात्रों के ग्रुप) द्वारा किए गए कल्चरल वॉक, नुक्कड़ नाटक, विभिन्न ग्रुप्स द्वारा प्रस्तुत हो, संथाली, कुड़ुख, सादरी, ओड़िया भाषाओं के गीत और नृत्य, जिनका ऑडिटोरियम में मौजूद दर्शकों ने भरपूर लुत्फ़ उठाया।
इससे पहले SRUTI की डायरेक्टर श्वेता ने इस समागम के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पूरे देश के अलग अलग हिस्सों इस तरह के आयोजन किए जा रहे हैं। देश के विभिन्न प्रदेशों में चल रहे विभिन्न जनांदोलनों से उपजे गीतों प्रसारित करने के उद्देश्य से उनकी दिल्ली समेत कई स्थानों पर स्टूडियो रिकॉर्डिंग कर लोकार्पण किया जा रहा है। ये गीत निकट भविष्य में सोशल मीडिया के अलग अलग प्लेटफार्म पर अपलोड किया जाएगा।
इसका उद्वेश्य संघर्ष से जुड़े तमाम सहमना संगठनों के साथ कारवां को आगे बढ़ाना है।
उन्होंने इस आयोजन की सराहना करते हुए सामाजिक न्याय और तमाम अधिकारों के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया।
श्रुति के कमल चंद किस्पोट्टा ने संस्था के उद्देश्यों के बारे जानकारी देते हुए बताया कि पंद्रह राज्यों में श्रुति पिछले चार दशकों से ज़मीन से जुड़कर जल जंगल ज़मीन की लड़ाई लड़ रहे विभिन्न संगठनों के साथ काम कर रही है। आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा।
युवा संवाद क्रम में चांडिल बांध के इतिहास, ख़िलाफ़ संघर्ष और उसके परिणाम पर अरविंद अंजुम और श्यामल मार्डी अपने अनुभव साझा किए। साथ ही नेतरहाट आंदोलन से जुड़े युवा साथी जेरोम जेराल्ड कुजूर और वरिष्ठ साथी ने लंबे संघर्ष की दास्तां साझा की।
श्रुति, नई दिल्ली के बारे में
यह संस्था पिछले चालीस सालों से ज़मीनी स्तर पर सामुदायिक संगठनों, जन संगठनों के साथ काम करती आई है। ये जमीनी संगठन हमारे लोकतन्त्र की धड़कनें हैं। समुदायों के एक-एक व्यक्ति तक संविधान और लोकतन्त्र की समझ और व्यवहार में लाने के लिए ये संगठन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं. निभा रहे हैं।
इन संगठनों ने समाज में सबसे वंचित लोगों की आवाज़ों को मुखर किया है। उनकी आवाज़ों को सत्ता तक पहुंचाने का काम किया है और वास्तव में एक लोकतान्त्रिक समाज का निर्माण किया है। देश के विकास की दौड़ में सबसे पीछे छूट गए या खो गए लोगों को उनके संविधान प्रदत्त हक़ हुकूकों से समृद्ध किया है। इस व्यापक सामाजिक-आर्थिक राजनैतिक परिदृश्य में उनकी पहचानें दिलाई हैं।
रचनात्मक प्रयास
‘श्रुति’ से जुड़े ऐसे जन संगठनों ने अभिव्यक्ति के विभिन्न माध्यम अपनाए हैं, जिनमें स्थानीय बोलियों में गीत-संगीत एक सशक्त माध्यम बन कर उभरी विधा है। आज भी भारत की मौलिक संस्कृति श्रम प्रधान है। हम व्यापक तौर पर एक श्रम आधारित समाज हैं। श्रम के साथ गीत-संगीत का रिश्ता कतई मौलिक रिश्ता है। इसी रिश्ते को इन जन संगठनों ने अपने अनुभवों में उतारा है और देश समाज में लोकतन्त्र को जीवंत बनाए रखने का काम किया है। अलग-अलग मौकों के लिए गीत तैयार किए हैं।
ये गीत असल में हमारे गांवों और गाँव के लोगों, देश के नागरिकों के तौर पर भी उन परिस्थितियों का जीवंत दस्तावेज़ हैं जिनसे वो रोज़ गुज़र रहे हैं।
रिकार्डेड गीतों का संकलन
श्रुति ने ऐसे गीतों का रिकॉर्डेड संकलन तैयार किया है। श्रुति देश के पंद्रह राज्यों में ऐसे जन संगठनों के साथ सहयोगी साथी के तौर पर काम करती है। इन पंद्रह राज्यों के जन संगठनों द्वारा तैयार किए गए गीतों को रिकॉर्ड करने का उद्यम पूरे साल किया गया है। इस मौके इन गीतों को समाज को सौंपने का काम किया गया।
‘माटी की गूंज’ सांस्कृतिक समागम में छतीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड के जन संगठनों द्वारा सृजित गीतों का विमोचन किया गया। इस अवसर पर हमारे साथ हर जन संगठन से जुड़े वो साथी उपस्थित रहे, जिन्होंने ये गीत लिखे हैं, उनकी धुनें बनाई हैं और उन्हें गाया है।

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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