असंवैधानिक रूप से चयन किए गए ग्राम प्रधानों को चिन्हित किया जाय
24 दिसंबर को पेसा कानून दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। खुशी की बात है कि झारखण्ड में पेसा कानून बना, लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि पेसा कानून बनने के बाद भी झारखण्ड के आदिवासी हर क्षेत्र में पिछड़ेपन का दंश झेल रहे हैं।
उक्त बातें सामाजिक कार्यकर्ता बाबूराम सोरेन ने मंगलवार को चांडिल के एक निजी होटल में आयोजित प्रेस वार्ता में कही। उन्होंने बताया कि झारखण्ड में जिस उद्देश्य से पैसा कानून बना वह आज भी पूरा नहीं हो पाया है, ज्ञात हो कि 24 दिसंबर 1996 में यह कानून बना, लेकिन आज तक इसका शत-प्रतिशत लाभ यहां के जनजाति समुदाय को नहीं मिला. यही कारण है कि यहां के जनजाति आज भी नौकरी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और अन्य कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां उन्हें अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है।
पेसा कानून के तहत आदिवासी को हर क्षेत्र में मिले वरीयता
झारखण्ड में पेसा कानून का विधि_सम्मत अनुपालन नहीं होने पर श्री सोरेन यह कहते हुए दु:ख प्रकट किया कि सरायकेला जिला सहित समूचे झारखण्ड अनुसूचित राज्य होने के बावजूद पेसा कानून की नियमावली का सरायकेला जिला में पूर्णतः लागू न होने से अनुसूचित जनजाति की हर जगह अनदेखी हो रही है। चाहे वह ग्राम प्रधान चुनने की प्रक्रिया या फिर ग्रामसभा से जुड़ा कोई भी अन्य मामला हो। उन्होंने राज्य के झारखण्ड सरकार से यह मांग की, कि बीते कई वर्षों से असंवैधानिक रूप से चयन किए गए ग्राम प्रधानों को चिन्हित कर उनकी एक सूची तैयार कर कड़ी से कड़ी करवाई करनी चाहिए और साथ ही साथ सभी विभाग के अधिकारियों को पेसा कानून के तहत आदिवासी को हर क्षेत्र में वरीयता देने के लिए अधिसूचना जारी करनी चाहिए।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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