पाकिस्तान से जंग की तमन्ना आज भी दिल में – योगेश्वर नंद सिंह
योगेश्वर नंद सिंह
रिटायर्ड पेटी ऑफिसर
टेल्को निवासी
ट्रेड:मैकेनिकल इंजीनियर
90198 70930
पाकिस्तान से जंग की तमन्ना आज भी दिल मे
खरंगाझार राधिका नगर में रहने वाले योगेश्वर नंद सिंह ने 2002 में नेवी में पेटी ऑफिसर मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर योगदान दिया। इसके बाद उड़ीसा के चिल्का बेस कैंप मे प्रशिक्षण के बाद आई एन एस शिवाजी पुणे के प्रशिक्षण केंद्र में भेज दिया गया।वहां से उनकी पहली पाेस्टिंग मझगांव पाेस्ट मुंबई में हुई. उनकी तमन्ना थल सेना में जाने की थी. जल सेना में रहते हुए भी उन्हाेंने स्पेशल फाेर्सेस मेरिन कमांडाें की ट्रेनिंग ली, किसी कारणवश उसमें उनका सलेक्शन नहीं हाे पाया ताे उन्हाेंने मरीन नेवल डाइवर का प्रशिक्षण हासिल किया. उनकी ट्रेनिंग काेच्चिन में हुई, जिसके बाद वे फिर मुंबई मझगांव पाेस्ट निरुपक शिप में तैनात कर दिये गये.
चाहे वह युद्ध का मैदान हाे या फिर मानवता का काम
सेवा कार्य के दाैरान देश-विदेश के कई भागाें में जाने का अवसर नेवी ऑफिसर याेगेश्वर काे हासिल हुआ. सेना एक ऐसा अंग है, जिसे किसी भी काम में लगाया दिया जाये ताे उसकी सफलता की गारंटी शत-प्रतिशत बढ़ जाती है. चाहे वह युद्ध का मैदान हाे या फिर मानवता का काम. ऐसे ही काम में उनके आइएनएस निरुपक काे मेडिकल शिप बनाकर इंडाेनेशिया में आये सुनामी में लगाया गया. परेशान आैर समुद्र में फंसे लाेगाें काे बड़े जहाज से छाेटे लाइफ वाेट-जेमिनी में उतर कर बचाया. कई लाेगाें का ऑपरेशन जहाज पर ही उनकी टीम के साथ डॉक्टराें ने किया. याेगेश्वर सिंह दक्ष नेवल डाइवर थे, इसलिए उनका इस्तेमाल केंद्रीय शिप में सर्वे कार्याें के लिए अधिक किया जाता था. मालदीप और आस-पास के क्षेत्राें में समुद्र के अंदर जाकर जानकारियां एकत्र करना उनका अहम काम हाेता है.
1971 की जंग में नेवी का इस्तेमाल हुआ था
2009 में उन्हाेंने काफी अहम जानकारियां माले के आस-पास से एकत्र की. उन्हाेंने कहा कि 1971 की जंग में नेवी का इस्तेमाल हुआ था. उनकी तमन्ना थी कि पाकिस्तान के साथ सीधी जंग का वे हिस्सा बने, इसीलिए उन्हाेंने मरीन कमांडाें का प्रशिक्षण लेना चाहा, लेकिन माैका नहीं मिला. फाैज में याेगदान देनेवाली की हार्दिक इच्छा हाेती है कि वह अपना बलिदान युद्ध भूमि पर ही दे. अभी भी उन्हें कॉलिंग पीरियड में रखा गया है. सीधी लड़ाई में ताे नहीं, सपोर्ट सर्विस में काम करेंगे. इसलिए वे अपने आप काे हमेशा फिट टू फाइट की स्थिति रखते हैं. झारखंड सरकार, जिला प्रशासन के साथ-साथ शहर के लाेगाें काे भी यदि उनकी जरूरत पड़ेगी ताे वे इसके लिए तैयार हैं. उनकी तमन्ना है कि पाकिस्तान के चार टुकड़े हाे. उन्हें पुकारा जायेगा ताे वे बिना देर किये चल पड़ेंगे।
1971 में ब्लू वाटर नेवी ने दिखाया था दम
नाम:- केशव कुमार वर्मा
रैंक:-पेटी ऑफिसर
मोबाइल:-8618125785
1971 के युद्ध में पाकिस्तानी नेवी को पहले ही दिन मुंह की खानी पड़ी. गाजी को समुद्र की गर्त में डूबा दिया गया. यह ब्लू वाटर नेवी की ताकत और कौशल का परिणाम था. हाल के वर्षों में हमारी शक्ति बढ़ी है. नये जहाज, पनडुब्बियां और आधुनिकीकरण पर फोकस किया गया। वर्तमान में पेटी ऑफिसर केशव कुमार वर्मा गोविंदपुर में निवास कर रहे है।
..और बांग्लादेश आ गया दुनिया के नक़्शे पर
पेटी ऑफिसर वरुण कुमार(से.नि)
भारतीय नौसेना
3 दिसंबर को आरम्भ हुए पाकिस्तान की नापाक हरकत की परिणति का दिन 16 दिसंबर नजदीक आ रहा था। मित्रों,हमारे वीरों ने अपने साहस,वीरता,युद्धनीति,और शौर्य से दुनिया की राजनीती को हिला दिया था। ऑपरेशन ट्राइडेंट ने पाकिस्तानी नेवी की कमर तोड़ दी जब गाज़ी को समुद्र की गर्त में डुबो दिया। याद कीजिये,उस बर्बरता को जब पाकिस्तानी उन बांग्लादेशी लोगों पर अपनी बेरहमी दिखाने को शान समझते थे और वहां की मुक्तिवाहिनी मूकदर्शक बनी रहती थी।हिंदुस्तान की धरती के रणनीतिकारों ने महसूस किया लेकिन पाकिस्तानियों ने 3 दिसंबर की रात भारत पर आक्रमण कर दिया। लांस नायक अल्बर्ट एक्का की पैटन टैंक से लड़ते बहादुरी की गाथा तो अभी आरम्भ ही हुई थी की लेफ्ट अरुण क्षेत्रपाल ने जहां में शौर्य की मिसाल का एक नया अध्याय लिख दिया।
मित्रों,
पूर्वी कमान के तत्कालीन कमांडर इन चीफ के स्टाफ ऑफिसर रहे जनरल जे एफ आर जैकब ने अपनी पुस्तक में युद्ध की रणनीति का बेजोड़ खुलासा किया है। 14 दिसंबर को जिस जिंदादिली और बहादुरी से वायु सेना के जांबाज निर्मलजीत सिंह सेखों ने पाकी सैनिकों के नाम में दम कर दिया और वीरगति को प्राप्त हुए वो भी एक दास्ताँ बनकर रह गयी। परमवीर चक्र इन वीरों ने इतिहास रच दिया।
छह सैबर जेट विमानों ने हमला किया था
14 दिसम्बर 1971 को श्रीनगर एयरफील्ड पर पाकिस्तान के छह सैबर जेट विमानों ने हमला किया था। सुरक्षा टुकड़ी की कमान संभालते हुए फ़्लाइंग ऑफ़िसर निर्मलजीत सिंह वहाँ पर 18 नेट स्क्वाड्रन के साथ तैनात थे। दुश्मन F-86 सेबर जेट वेमानों के साथ आया था। उस समय निर्मलजीत के साथ फ्लाइंग लैफ्टिनेंट घुम्मन भी कमर कस कर मौजूद थे। एयरफील्ड में एकदम सवेरे काफ़ी धुँध थी।
गोता लगाने की तैयारी
सुबह 8 बजकर 2 मिनट पर चेतावनी मिली थी कि दुश्मन आक्रमण पर है। निर्मलसिंह तथा घुम्मन ने तुरंत अपने उड़ जाने का संकेत दिया और उत्तर की प्रतीक्षा में दस सेकेण्ड के बाद बिना उत्तर उड़ जाने का निर्णय लिया। ठीक 8 बजकर 4 मीनट पर दोनों वायु सेना-अधिकारी दुश्मन का सामना करने के लिए आसमान में थे। उस समय दुश्मन का पहला F-86 सेबर जेट एयर फील्ड पर गोता लगाने की तैयारी कर रहा था। एयर फील्ड से पहले घुम्मन के जहाज ने रन वे छोड़ा था। उसके बाद जैसे ही निर्मलजीत सिंह का नेट उड़ा, रन वे पर उनके ठीक पीछे एक बम आकर गिरा।
सारी एयरफिल्ड धुएँ और धूल से भर गई थी
घुम्मन उस समय खुद एक सेबर जेट का पीछा कर रहे थे। सेखों ने हवा में आकार दो सेबर जेट विमानों का सामना किया, इनमें से एक जहाज वही था, जिसने एयरफिल्ट पर बम गिराया था। बम गिरने के बाद एयर फील्ड से कॉम्बैट एयर पेट्रोल का सम्पर्क सेखों तथा घुम्मन से टूट गया था। सारी एयरफिल्ड धुएँ और धूल से भर गई थी, जो उस बम विस्फोट का परिणाम थी। इस सबके कारण दूर तक देख पाना कठिन था। तभी फ्लाइट कमाण्डर स्क्वाड्रन लीडर पठानिया को नजर आया कि कोई दो हवाई जहाज मुठभेड़ की तौयारी में हैं।
‘मैं दो सेबर जेट जहाजों के पीछे हूँ…मैं उन्हें जाने नहीं दूँगा…’
‘मैं दो सेबर जेट जहाजों के पीछे हूँ…मैं उन्हें जाने नहीं दूँगा…’
उसके कुछ ही क्षण बाद नेट से आक्रमण की आवाज़ आसपान में गूँजी और एक सेबर जेट आग में जलता हुआ गिरता नजर आया। तभी निर्मलजीत सिंह सेखों ने अपना सन्देश प्रसारित किया:
अब तुम मोर्चा संभालो
‘मैं मुकाबले पर हूँ और मुझे मजा आ रहा है। मेरे इर्द-गिर्द दुश्मन के दो सेबर जेट हैं। मैं एक का ही पीछा कर रहा हूँ, दूसरा मेरे साथ-साथ चल रहा है।’
इस सन्देश के जवाब में स्क्वेड्रन लीडर पठानिया ने निर्मलजित सिंह को कुछ सुरक्षा सम्बन्धी हिदायत दी, जिसे उन्होंने पहले ही पूरा कर लिया था। इसके बाद नेट से एक और धमाका हुआ जिसके साथ दुश्मन के सेबर जेट के ध्वस्त होने की आवाज़ भी आई। अभी निर्मलजीत सिंह को कुछ और भी करना बाकी था, उनका निशाना फिर लगा और एक बड़े धमाके के साथ दूसरा सेबर जेट भी ढेर हो गया। कुछ देर की शांति के बाद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों का सन्देश फिर सुना गया। उन्होंने कहा-‘शायद मेरा नेट भी निशाने पर आ गया है… घुम्मन, अब तुम मोर्चा संभालो।’
यह निर्मलजीत सिंह का अंतिम सन्देश था
यह निर्मलजीत सिंह का अंतिम सन्देश था। अपना काम पूरा करके वह वीरगति को प्राप्त हो गए।और अब बारी थी राजनीती के साथ इतिहास और विश्व का भूगोल बदलने का। युद्ध तो हो गया लेकिन दुनिया को थी भारतीय सेना की जिद्द दिखाने की। पाक जनरल नियाज़ी उहापोह में था। अब लड़ने की क्षमता शेष नहीं थी। लेकिन ढाका को जितने की जिद्द थी हममें बांकी।लेकिन सच मानिए जहाँ 30 हज़ार पाक सैनिक वहां थे हमारे करीब 3300। लेकिन रणनीति बदली और टहलते हुएनियाज़ी के पास पहुंचे जेनरल अरोरा और कहा मैं तुम्हे 30मिनट देता हूँ और अगले ही पल कहा पिस्तौल सरेंडर करो। नियाज़ी की आँखों में आंसूं आ गए। लेकिन दूसरी तरफ धक की गवर्मेंट हाउस पर हमारी सेना ने हमला बोल।दिया।अब कोई उपाय नहीं था और जनरल नियाज़ी ने अपने हथियार डाल दिए और दुनिया के मानचित्र पर बांग्लादेश का उदय हो गया।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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