यह पुस्तक झारखंड के इतिहास में रुचि रखने वाले के साथ-साथ सामान्य विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है -डॉ. सुख चन्द्र झा
बिष्टुपुर के जी टाउन क्लब के सभागार में डॉ. सुखचंद्र झा द्वारा लिखित झारखंड के राजवंश पुस्तक का आज विमोचन किया गया। विमोचन का आयोजन गांधी शांति प्रतिष्ठान और जिला सर्वोदय मंडल की ओर से किया गया था। यह पुस्तक दिल्ली के अनुज्ञा बुक्स द्वारा प्रकाशित हुई है। डॉ. सुखचंद झा टाटा स्टील में कार्यरत रहे और अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि ग्रहण की। यह पुस्तक उनके शोध-पत्र पर आधारित है। यह पुस्तक न केवल इतिहास के गंभीर पाठकों, झारखंड के इतिहास में रुचि रखने वाले के लिए ही नहीं, बल्कि सामान्य विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है।
विमोचन के पश्चात पुस्तक की विषय वस्तु पर प्रकाश डालते हुए डॉ. सुख चंद्र झा ने बताया कि झारखंड में राजतंत्र की व्यवस्था बहुत पुरानी नहीं है। भारत में ईसा पूर्व छठी शताब्दी में साम्राज्य की स्थापना हुई और उसके पहले जनपद थे यानी छोटा राज्य। झारखंड में छठी शताब्दी में या फिर कुछ विद्वानों के अनुसार 11वीं शताब्दी में नाग वंश की स्थापना हुई इसके बाद ही सारे राजा अस्तित्व में आए। संथाल परगना में तो मुगल काल में राजतंत्र विकसित हुआ। वैसे देखा जाए तो झारखंड में राजतंत्र कोई सुगठित व्यवस्था के रूप में नहीं रही है। देश के अन्य इलाकों के राजतंत्र का यहां छिटपुट प्रभाव पड़ा है। हम यह कह सकते हैं कि झारखंड में राजतंत्र स्वाभाविक रूप से नहीं बल्कि संगठित राजवंशों के द्वारा थोपा गया है। ब्रिटिश काल में झारखंड के राजवंश राजस्व एकत्र करने के साधन बनकर रह गए। अंग्रेजों का इस इलाके में हस्तक्षेप प्रायः राजस्व वसूली को सुगम बनाने से था। फिर भी यहां के राजा राजस्व का लक्ष्य अर्जित करने में सफल रह जाते थे।
यह एक दिलचस्प किताब है और इससे गुजरना अत्यंत रोचक अनुभव सिद्ध होता है -अरविंद अंजुम
पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद अंजुम ने कहा कि पुस्तक में जानकारी दी गई है कि झारखंड में पुरा पाषाण, मध्य पाषाण और नवपाषाण युग के औजार पाए गए हैं। इसका अर्थ है कि 60000 वर्ष पहले जब दक्षिण अफ्रीका से होमो सेपियंस प्रजाति भारत की दिशा में आई तो इसका एक समूह इस इलाके में आकर बस गया। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि झारखंड के आदिवासी भारत के सबसे पुराने लोगों में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह एक दिलचस्प किताब है और इससे गुजरना अत्यंत रोचक अनुभव सिद्ध होता है।
सुजय राय ने कहा कि झारखंड में पारंपरिक राजतंत्र नहीं था। राजा और प्रजा में ज्यादा फासला नहीं था और यहां के राजा विस्तारवादी नहीं थे।
जनता के साथ उनके अंतर्विरोध को भी रेखांकित करना चाहिए -डॉ. बी एएन प्रसाद
विस्थापन विरोधी आंदोलन के नेता कुमार मार्डी ने कहा कि राजाओं के पहले का इतिहास भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। मुगल काल एवं ब्रिटिश काल में ही हम राजतंत्र का रूप देखते हैं। यहां के मौलिक इतिहास पर गंभीर काम की जरूरत है। एलबीएसएम महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बी एएन प्रसाद ने कहा कि राजघरानों की जानकारी दी गई है पर जनता के साथ उनके अंतर्विरोध को भी रेखांकित करना चाहिए।
इनकी रही गरिमामयी उपस्थिति
आज के समारोह में प्रो अहमद बद्र, सियासरन शर्मा, रामनारायण प्रसाद,अशोक शुभदर्शी, शशि कुमार, डी एन एस आनंद, मुकुंदर, अंबिका प्रसाद यादव, प्रेम शर्मा, ओमप्रकाश, मंजरी सिन्हा, दीपक रंजीत, विश्वनाथ, नरेश दास, रमन, मुकुंद, उषा झा, चिन्मयी, निधि, राकेश कुमार, मुकुंद आदि शामिल हुए। समारोह मे उपस्थित लोगों का स्वागत विकास, धन्यवाद अविनाश कुमार तथा संचालन शशांक शेखर ने किया।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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