कमलकांत लाल के कहानी संग्रह ‘दास्तान-ए-विकासनगर’ का लोकार्पण
भूख, विस्थापन, बेरोजगारी है कमलकांत लाल कहानियाँ की कहानियों की केंद्रीय संवेदना
“कमलकांत लाल का विकास नगर कमोबेश जमशेदपुर ही है। जो शहर कई पीढ़ियों को काम दे रहा था। वहाँ लोगों के बच्चों के लिए काम नहीं है। कमलकांत लाल की कहानियों की केंद्रीय संवेदना भूख है। उनकी कहानी ‘ ग्रहण: एक प्रेमकथा’ इस उम्मीद को व्यक्त करती है कि एक न एक दिन दमनकारी तानाशाह सत्ता जरूर बदलेगी।” आज सिक्युरिटी फ्लैट्स, क्लब हाऊस, नार्दन टाउन, जमशेदपुर में कहानीकार कमलकांत लाल के कहानी संग्रह “दास्तान-ए- विकास नगर’ के लोकार्पण और पुस्तक चर्चा” कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथाकार जयनंदन ने ये बातें कहीं।
‘दास्तान-ए-विकासनगर’ विकास की रणनीति पर सवाल उठाता है -मिथिलेश कुमार सिंह
प्रलेस के राज्य महासचिव मिथिलेश कुमार सिंह के अनुसार ‘दास्तान-ए-विकासनगर’ विकास की रणनीति पर सवाल उठाता है। इस विकास मॉडल का इतना ही लक्ष्य है कि पूंजीपतियों को सस्ते श्रम की उपलब्धता होती रहे। कमल कांत लाल की कहानियाँ पाठकों को संवेदनशील बनाती हैं।
जलेस के शैलेंद्र अस्थाना ने कहा कि ये कहानियों में व्यवस्था की विसंगतियों को उकेरने की चेष्टा करती हैं। कहानीकार ने सशक्त स्त्री-चरित्रों की रचना की है। इनमें मंदी, छंटनी, बेरोजगारी आदि समस्याओं से जूझते और रास्ता तलाशते लोगों की कहानियाँ हैं।
कहानीकार का अनुभव क्षेत्र विशाल -महादेव टोप्पो
वरिष्ठ साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि कहानीकार का अनुभव क्षेत्र विशाल है। वे पाठकों की संवेदना को जगाये रखने की कोशिश करते हैं। वह इस संग्रह की साकारात्मक चीज है। इनकी कहानियों में आदिवासी पात्र हैं, यह अच्छी बात है। ऐसा लगता है कि वे उनके संघर्षों के बीच गए हैं।
यह जमशेदपुर के 125 साल की कहानी -नेयाज अख्तर
कहानीकार पंकज मित्र ने कहा कि कमलकांत लाल उन अनसुनी आवाजों को सुनने वाले कहानीकार हैं, जिसे आमतौर पर लोग देखते-सुनते नहीं। विकासनगर, औद्योगिकरण से गुजरते किसी भी शहर का प्रतीक हो सकता है। जसम के सुधीर सुमन ने कहा कि भूख, बेरोजगारी, विस्थापन जैसे कुछ बुनियादी जीवन प्रश्न जो हिन्दी कहानी में प्रायः उपेक्षित हैं, उनको हिन्दी कहानी को केंद्र में लाने का प्रयास है- दास्तान-ए-विकासनगर । कथाकार नेयाज अख्तर ने कहा कि यह जमशेदपुर के 125 साल की कहानी है।
कमलकांत लाल ने ‘तुरुप का पत्ता’ रख दिया है -शशि कुमार
प्रलेस के संरक्षक शशि कुमार ने कहा कि कमलकांत लाल ने ‘तुरुप का पत्ता’ रख दिया है। उनकी कहानियाँ विस्थापन, बेरोजगारी और मंदी पर केंद्रित हैं। कहानीकार कमलकांत लाल ने कहा कि उन्होंने सारी कहानियाँ विस्थापन के दर्द को लेकर लिखी है। ये अन्यायपूर्ण व्यवस्था का सृजनात्मक प्रतिवाद हैं। कार्यक्रम के आरंभ में ‘लिटिल इप्टा’ के बाल कलाकारों ने अतिथियों का स्वागत किया और जनगीत सुनाया।
संचालन शायर अहमद बद्र ने किया। इस दौरान उन्होंने सभी वक्ताओं को मौजूं शेरों के साथ आमंत्रित किया। धन्यवाद ज्ञापन विनय कुमार ने किया।
कार्यक्रम में कवयित्री ज्योत्सना अस्थाना, इप्टा की अर्पिता, कहानीकार कमल, कृपाशंकर, अशोक शुभदर्शी, चंद्रकांत, डॉ. एस. के. झा, प्रो. बी एन प्रसाद, संजय सोलोमन, गौहर अजीज, रमण, अंकित, नीलेश, राबिया तब्बसुम, द्वारिकानाथ पांडेय, ओमप्रकाश, डी.एन. एस. आनंद, कहानीकार शेखर, संतोष कुमार सिंह, वर्षा, सुजल, रौशनी, करण, दिव्या, सुरभि, लक्ष्मी, नम्रता आदि मौजूद थे।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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