1855-1856 में जमींदारों के अत्याचार के विरोध में हुल विद्रोह -लोटन दास
अखिल भारतीय किसान सभा और CPI(M) की ओर से रविवार को बोड़ाम में हूल दिवस मनाया गया। कार्यक्रम में पार्टी का झंडा जिला सचिव मंडल सदस्य एवं किसान सभा के जिला अध्यक्ष कॉम. लोटन दास ने फहराया और सिदो-कान्हु की प्रतिकृति पर माल्यार्पण किया और उन्हें नमन किया।
उन्होंने बताया कि 1855-1856 में जमींदारों के अत्याचार के विरोध में संथाल परगना के भोगनाडीह और आस-पास के 400 गांवों के 50000 आदिवासी किसानों ने सिदो को अपना राजा, कान्हु को मंत्री, चांद को प्रसाशक और भैरव को सेनापति बनाया और जमींदारों के विरोध में विद्रोह की घोषणा कर दी।
सिदो-कान्हू को भोगनाडीह में पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी गई
जल, जंगल, जमीन की लड़ाई शुरू हो गई। लंबी लड़ाई में जमींदार एवं अंग्रेजी फौज के साथ भीषण संघर्ष में 20000 आदिवासियों ने शहादतें दी और चांद, भैरव भी मारे गए। सिदो-कान्हू को भोगनाडीह में पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी गई। उसी दिन से हुल दिवस संथाल विद्रोह का दिन इतिहास की पन्ने में लिखा गया ।1857की सिपाही विद्रोह को संथाल विद्रोह से प्रेरणा मिली।
कार्यक्रम में गुरुपद, माणिक, डोमन, हाबू, खुदीराम, आनंदो, कार्तिक, नियति, पुष्पो, सजनी, बेदनी, पार्वती, दीपाली, शिवानी , सरोती श्याम सुंदर आदि उपस्थित थे ।
हुल दिवस पर विशेष : संथाल हुल विद्रोह के ऐतिहासिक मायने और वर्त्तमान सन्दर्भ में उसकी महत्ता
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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