झारखण्ड के कुड़मि समुदाय को न्याय दिलाने के लिए वकालत में तकरीर जारी है-अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव
एबओरिजिनल कुड़ुमी पंच की तरफ से आज 8 अप्रैल को इसके अध्यक्ष डॉ. बी बी महतो द्वारा दायर रिट पिटीशन संख्या WPC 2267/2021 की सुनवाई माननीय उच्च न्यायालय, झारखंड में माननीय न्यायाधीश राजेश कुमार की अदालत में हुई। अधिवक्ताओं के सुनने के पश्चात माननीय न्यायाधीश ने उक्त रिट पिटीशन को स्वीकार कर लिया। सुनवाई में उपस्थित सभी पक्षों के अधिवक्ताओं ने सरकार और अन्य पक्षों की तरफ से नोटिस स्वीकार कर लिया, अतः माननीय न्यायाधीश ने सभी पक्षों को स्वैच्छिक हलफनामा दायर करने के निर्देश के साथ पिटीशन को मेरिट पर सुनवाई के लिए रख दिया।
..जो संविधान के अनुच्छेद 342 का उल्लंघन है
ज्ञातव्य है कि डॉ. बी बी महतो ने अपने रिट में कहा है कि वे भारत सरकार की 1913 और 1931 की अधिसूचनाओं 550 और 3563 J में आदिवासी थे लेकिन राष्ट्रपति की 1950 की अधिसूचना में छोटानागपुर के कुड़ुमियों को बिहार का कुर्मी समझ कर अतिपिछड़ा समुदाय की श्रेणी में डाल दिया, जो संविधान के अनुच्छेद 342 का उल्लंघन है। उन्होंने रिट में आगे कहा कि 1913 और 1931 की अधिसूचना कुड़ुमियों के आदिवासी होने का अकाट्य प्रमाण हैं, जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 11.03.2022 को सिविल संख्या 7117/ 2019; प्रिया प्रमोद गजबे बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में पुष्ट किया है।
उन्होंने रिट पिटीशन में डाल्टन, रिजले और गिअरसन जैसे ख्यातिलब्ध विद्वानों की पुस्तकों यथा Tribes & Caste of Bengal, Ethnographic Grossary, Census of India, Vol. VII Bihr & Orissa Part I, Report 1, माननीय पटना उच्च न्यायालय का कृतीबास महतो बनाम बुधन महतानी का आदेश और के एस सिंह की पुस्तक People of India – Bihar including Jharkhand में दिये गये archeological और anthropological तथ्यों को उद्धृत करते हुए अपने दावों की सत्यता को प्रमाणित करने की कोशिश की है!
डॉ. विद्या भूषण महतो ने कहा कि अब तो कुड़ुमियों के आदिवासी होने के जेनेटिक प्रमाण भी हैं
डॉ. विद्या भूषण महतो ने कहा कि अब तो कुड़ुमियों के आदिवासी होने के जेनेटिक प्रमाण भी हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ख्यातिप्राप्त जेनेटिसिस्ट श्री ज्ञानेश्वर चौबे ने कुड़ुमियों के 180 Blood samples की जांच कर कहा है कि कुड़ुमियों के mitochondrial DNA में M31 म्यूटेशन मिला जो अंदमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले सबसे पुराने आदिवासी समूह मिला था जिससे यह प्रमाणित होता है कि कुड़ुमी भी इस देश के सबसे पुराने आदिवासी हैं और छोटानागपुर के पठार पर 65000 साल से रह रहे हैं! उन्होंने कहा कि
जब सरकार से न्याय नहीं मिला तो झारखण्ड हाई कोर्ट की शरण में गए। उन्होंने कहा कि 1950 की अधिसूचना में भूल हुई है हमने माननीय उच्च न्यायालय से इंतजा की है कि वे भारत सरकार को उस भूल को सुधार कर कुड़ुमियों को फिर से ST List में शामिल करने का निर्देश देने की कृपा करें।
झारखण्ड में संताल समेत अन्य जनजातियों की तरह कुड़मि भी आदिवासी हैं
अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, रोहित सिंहा, मंजरी सिंहा, एम आई हसन और निर्मल घोष ने पैरवी की। अधिवक्ता अखिलेश ने बताया कि तमाम तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए झारखण्ड के कुड़मि समुदाय को न्याय दिलाने के लिए वकालत में तकरीर जारी है. अधिवक्ता अखिलेश ने बताया कि जिस प्रकार झारखण्ड में संताल समेत अन्य जनजातियां आदिवासी हैं, उसी प्रकार कुड़मि भी आदिवासी है. इसके कई प्रमाण हैं और वही प्रमाण झारखण्ड हाई कोर्ट में प्रस्तुत किए गए. उन्होंने इस समुदाय की भाषा और इसकी जेनेटिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर कर दलील पेश की है।, कि यह बहुत ही पुख्ता सबुत हैं। उन्होंने कहा कि मातृ पक्ष के डीएनए की जांच में माईटोकोन्ड्रियल डीएनए में हैपलोग्रुप M और M2 केंद्रित रूप से 93% तक झारखंड के कुड़मियों में मिला उससे यह ज्ञात होता है कि ये होविनियन समुदाय के हैं और इनका उद्भव 65 000 से 54,000 के बीच हुआ है।
उन्होंने यह भी बताया कि पितृ पक्ष के डीएनए की जांच अभी चल रही है, जिसकी रपट आनी शेष है।
क्या #kudmi को मिलने वाला है आदिवासी का दर्ज़ा ? Kudmi St Inclusion | kya Mahto Adivasi haiii ?
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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