उद्देश्य युवाओं में वैज्ञानिक चेतना का संचार करना है
रांची के नामकुम इलाके के बगइचा में 19 से 21 जनवरी तक आयोजित तीन दिवसीय “सामाजिक परिवर्तन शाला” में प्रतिभागियों ने यूनिवर्स की उत्पत्ति से लेकर जीवों के क्रमिक विकास क्रम को जाना. इसका उद्देश्य युवाओं में वैज्ञानिक चेतना का संचार करना है. कई सत्रों में प्रशिक्षकों ने क्रमवार ‘Big Bang’ यानि बड़े धमाके से लेकर मानव की उत्पत्ति तक की जानकारियां वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ दी. बताया गया कि आज से लगभग 13.8 अरब साल पूर्व Big Bang हुआ. उसके अरबों वर्ष बाद यानि 4.5 अरब साल पहले सौरमंडल का निर्माण हुआ.
सौरमंडल में ऑक्सीजन
फ़िर करोड़ों साल के बाद पृथ्वी बनी,..अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ,.. थिया नामक उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने के फलस्वरूप चन्द्रमा का निर्माण हुआ…निरंतर करोड़ों वर्षों तक सौरमंडल में हलचल के बाद धुंध के बादल बने, लाखों वर्ष तक बारिश के फलस्वरूप पृथ्वी पर महासागरों का निर्माण हुआ. हाईद्रोजन, हीलियम, कार्बनडाईऑक्साइड आदि के उपरांत लंबे समय अन्तराल के बाद सायनो बैक्टीरिया के कारण सौरमंडल में ऑक्सीजन बड़े पैमाने पर फ़ैल गई..फिर समुद्र में एक कोशिकीय जीव की उत्पत्ति हुई..
थिया नामक एक उल्का पिण्ड के पृथ्वी से टकराने के कारण…
इसी प्रकार बहुकोशिकीय जीवों की उत्पत्ति प्रारंभ हुई. कहा जाता है थिया नामक एक उल्का पिण्ड के पृथ्वी से टकराने के कारण पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ, क्योंकि तभी से जीव की उत्पत्ति के अनुकूल वातावरण बना। उसके बाद मछली की उत्पत्ति हुई। यह सिलसिला निरंतर करोड़ों वर्षों तक चलता रहा….जल चर के बाद थलचर फिर उभय चर प्राणियों का धरती पर आगमन हुआ. इसी तरह निरंतर निर्माण का क्रम चलता रहा. फिर सबसे अंत में लाखों साल पूर्व आदि मानव की उत्पत्ति हुई. …सभ्यता का विकास कुछेक हज़ार वर्ष पूर्व हुआ.
बगाईचा के सभागार कक्ष में तीन दिनों में प्रोजेक्टर व अन्य तरीकों से सौरमंडल, पृथ्वी और जीवों की उत्पत्ति से लेकर विकास क्रम को दर्शाया गया.
इस क्रम में विभिन्न खेल-गतिविधियों के ज़रिए भी प्रतिभागियों का ज्ञान-वर्धन किया गया. हर दिन सुबह बगाईचा स्थित एम्फी थिएटर में विभिन्न शारीरिक क्रियाओं और खेल गतिविधियों के माध्यम से मौजूद प्रतिभागियों में ऊर्जा का संचार किया गया. इसी क्रम में दैनिक समाचार, खबरों का विश्लेषण, ज्ञापन बनाना आदि प्रतिभागियों के समूहों ने प्रस्तुत किया। प्रत्येक सत्र के शुरू और दिन के समापन के समय गीत-संगीत का दौर चला. विभिन्न सत्रों के ज़रिए इस विषय पर गहन अध्ययन और विवेचन किया गया।
कार्यशाला में झारखण्ड के विभिन्न ज़िलों के कुल 25 प्रतिभागी शामिल हुए
झारखण्ड आदिवासी वीमेन एसोसिएशन (जावा), जन-मुक्ति संघर्ष वाहिनी, विस्थापित मुक्ति वाहिनी, केन्द्रीय जन संघर्ष समिति, आदि संस्कृति एवं विज्ञान संस्था के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला में झारखण्ड के विभिन्न ज़िलों के कुल 25 प्रतिभागी शामिल हुए। कार्यशाला की शुरुआत के समय ख़ास तौर पर बगाईचा संचालक फ़ादर पीएम टोनी और जसवा. के वरिष्ठ साथी मंथन मौजूद थे, जबकि अंतिम दिन के आखिरी सत्र में संघर्ष वाहिनी के पुराने साथी व वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास, विनोद कुमार, किरण जी, स्वाति शबनम, अरविन्द अंजुम, अनंत हेम्ब्रम आदि उपस्थित हुए. पूरे कार्यशाला के दौरान विभिन्न सामाजिक संगठनों के सक्रिय कार्यकर्त्ताओं ने अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराई, जिनमें कोर्दुला कुजूर, पाला भाई, सलोमी एक्का, शशांक शेखर आदि शामिल थे.
इस तीन दिवसीय सामाजिक परिवर्तन शाला में रिसोर्स पर्सन के तौर पर “SRUTI” संस्था के मोहन भाई, कमल कंठ, विकास कुमार, कुमार दिलीप, कामेश्वर आदि शामिल थे।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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