
बाबा तिलका माझी का शहादत दिवस बाबा तिलका माझी क्लब, बालिगुमा में आज 13 जनवरी को मनाया गया.
तिलका आंदोलन : (1771- 85 ई.)
विद्रोह के कारण
वर्ष 1771 ई. में तिलका मांझी ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया, जिसे ‘तिलका आंदोलन’ के नाम से जाना गया। यह आंदोलन अपनी जमीन पर अधिकार के लिए, पड़हियों/पहाड़ियों को अधिक सुविधा देकर फूट डालने वाली नीति के विरोध में तथा क्लिवलैण्ड के दमन के विरोध में था।
शहीद तिलका मांझी के उप नाम जबरा पहाड़िया प्रसिद्ध था।
विद्रोह का स्वरुप
वे गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) करने में बड़े कुशल थे। वर्ष 1778 ई. में ऑगस्टल क्लिवलैण्ड को राजमहल क्षेत्र का पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया। उसने फूट डालने की नीति अपनाई और नियुक्ति के नौ महीने के भीतर 47 पड़हिया सरदारों को अपना समर्थक बना लिया और जौराह नामक व्यक्ति को इनका प्रमुख बनाया। पड़हिया सरदारों को कुछ सुविधाएँ दी गई और अंग्रेज उनसे कोई कर नहीं लेते थे। इस बात का विरोध संथाल समुदाय के एक वीर सरदार तिलका मांझी ने किया। उसका कहना था कि नीति एक समान होनी चाहिए। तिलका ने अंग्रेजों के समर्थक पड़हिया जाति के जौराह का भी विरोध किया। तिलका मांझी का उर्फ नाम जाबरा पहाड़िया था।
तिलका ने भागलपुर के पास वनचरीजोर नामक स्थान से अंग्रेजों का विरोध आरंभ किया
तिलका ने भागलपुर के पास वनचरीजोर नामक स्थान से अंग्रेजों का विरोध आरंभ किया। राबिनहुड की भाँति वह जब तब शाही खजानों व गोदामों को लूट कर गरीबों के बीच बाँट देता था। उसने साल पत्ता के माध्यम से घर-घर संदेश भेजा और संथालों को संगठित करना शुरू कर दिया। वर्ष 1784 ई. के आरंभ में अपने अनुयायियों के सहयोग से तिलका ने भागलपुर पर आक्रमण किया। 13 जनवरी के दिन वह ताड़ के एक पेड़ पर छुप कर बैठ गया। उसी रास्ते से होकर गुजरते हुए घोड़े पर सवार क्लिवलैण्ड को उसने तीर से मार गिराया।
इससे अंग्रेजी सेना में दहशत फैल गई। अब अंग्रेजी सेना की मदद के लिए आयरकूट को भेजा गया। आयरकूट ने पड़हिया सरदार जौराह के साथ मिलकर तिलका मांझी के अनुयायियों पर हमला बोल दिया। तिलका मांझी के अनेक अनुयायी हताहत हुए। लेकिन तिलका मांझी बचकर भाग निकला और सुल्तानगंज की पहाड़ियों में जा छिपा। 1785 ई. में तिलका मांझी को धोखे से पकड़ लिया गया और उसे रस्सी से बाँधकर चार घोड़ों द्वारा घसीटते हुए भागलपुर लाया गया, जहाँ उन्हे बरगद के पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दी गई। वह स्थान आज ‘बाबा तिलका मांझी चौक’ के नाम से जाना जाता है।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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