बुंदेलखंड के डाकुओं की कहानी पूरी दुनिया में मशहूर रही है. कानून की किताबें भले उन्हें डाकू कहती हो, लेकिन बुंदेलखंड के लोग आज भी उन्हें बागी कहकर पुकारते हैं. उनको रॉबिनहुड समझते हैं. उनकी याद में एक अनोखी परंपरा भी चलती है. झांसी के एरच कस्बे में स्थानीय लोग आज भी एक अनूठी परंपरा का निर्वाह करते हुए डाकू मुस्तकीम की याद में स्वांग रचते हैं. ये लोग समूह में एकजुट होकर डकैतों की तरह कपड़े पहनकर हाथों में नकली बंदूक थामकर सड़क पर गुजरने वाले राहगीरों को रोक लेते हैं और उनसे डकैतों के अंदाज में रुपये मांगते हैं. हर वर्ष दीपावली से कुछ दिन पहले इस तरह का स्वांग स्थानीय लोग करते हैं. इस साल भी एरच में सड़कों पर ये नकली डाकू सड़क पर उतरकर इस तरह लूट का स्वांग करते नजर आये.
ज्यादातर स्थानीय लोग इस परम्परा को जानते हैं और इन नकली डाकुओं को देखकर मुस्कुराते हुए अपनी जेब से निकालकर चंदे के रूप में कुछ रूपये दे देते हैं. इनमें से कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो कुछ भी नहीं देते. इस दौरान स्वांग करने वाला यह दल बम की तरह सड़क पर पटाखे पटकता है. नकली बंदूक दिखाकर चालक से पैसे वसूलने की कोशिश करता है. स्थानीय लोगों के लिए यह परंपरा और स्वांग किसी मनोरंजन की तरह साबित होती है. डाकुओं का रूप धरकर स्वांग की यह परंपरा यह बात भी जाहिर करती है कि किसी समय में इस क्षेत्र में डाकुओं की खासी लोकप्रियता हुआ करती थी.
डाकुओं की सम्मान में होती है परंपरा
स्वांगदल के सदस्य बाबू लाल के अनुसार लोग डाकुओं का रूप धरकर सड़कों पर इस तरह का स्वांग करते हैं. सब लोग अलग-अलग तरह का रूप धरते हैं. यह परंपरा हर साल निभाई जाती है. डाकू मुस्तकीम बाबा की स्मृति में हर साल स्थानीय लोग इस तरह का स्वांग करते हैं. इसमें कुछ लोग डाकू बनते हैं तो कुछ लोग अन्य तरह के रूप भी धरते हैं. मोहम्मद आजाद कहते हैं स्वांग में पूरे गांव के लोग हिस्सा लेते हैं. इसी तरह डाकू फूलन देवी का दल बनाकर भी कुछ लोग दूसरी जगह इसी तरह स्वांग कर रहे हैं.
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