साल 2000 में जिन लोगों ने ये बदलाव देखा उनमें से अधिकतर 80’s और 90’s की पैदाइश थे। इसके साथ-साथ इन लोगों ने देखा ऐसा ख़ौफ़ जो किसी प्राकृतिक आपदा से भी बड़ी तबाही ला सकता था।
बात कर रहे हैं Y2K बग की। जब कम्प्यूटर सिस्टम में डेटस की गड़बड़ी के चलते ऐसा लगा था कि दुनिया के सारे सिस्टम ठप हो जाएंगे। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने Y2K बग के समाधान पर लाखों डॉलर खर्च किए। दिसम्बर 1999 में ऑस्ट्रेलिया ने रूस से अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया था। रूस Y2K समस्या के लिए कुछ नहीं कर रहा था।और ऑस्ट्रेलिया को लगा कि साल 2000 की शुरुआत होते ही वहां बड़ी दिक्कतें पैदा होंगी।
डिजास्टर कहा जाने वाला Y2K हुआ आईटी बूम
90’s के दशक में Y2K बग की समस्या को सुलझाने के लिए प्रोग्रामिंग में सैकड़ों बदलाव किए गए।और ज़रूरत पड़ी हज़ारों प्रोग्रामर्स की। ये सब मुहैया कराए भारत ने।
Y2K बग के चलते अमेरिका ने H1 वीज़ा की लिमिट में इज़ाफ़ा किया। सिर्फ़ 3 साल भारत में काम करने के बाद हर दूसरा कम्प्यूटर प्रोग्रामर अमेरिका जाने लगा। 90 के दशक और उसके बाद के कुछ सालों तक भारत से हर महीने तक़रीबन 10 हज़ार लोग अमेरिका पहुंचे।
बूम का फायदा मिला हैदराबाद को
जो बग दुनिया के लिए डिज़ास्टर लाने वाला था, वो भारत के IT सेक्टर में एक बड़ा बूम लाया।इस बूम का सबसे बड़ा फ़ायदा मिला हैदराबाद को। मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू तब हैदराबाद को नई सिलिकॉन वैली बनाना चाहते थे। बिल गेटस हैदराबाद आकर वहां माइक्रोसॉफ़्ट का एक सेंटर खोला। साल 2000 में जब बिल गेट्स हैदराबाद पहुंचे तो स्टेज में उनके साथ भारतीय IT कम्पनियों के मालिक, इंफोसिस, विप्रो, टीसीएस के चेयरमैन मौजूद थे।इनमें से एक था सत्यम कम्प्यूटर्स का मालिक रामलिंग राजू।
सत्यम कंप्यूटर्स की शुरुआत
आईए चलते है शुरुआत से। किसान के घर पैदा हुआ रामलिंगल राजू पढ़ाई में अच्छा था।बड़ा होकर विदेश गया और वहां से MBA की डिग्री हासिल भी की। भारत लौटकर अपना बिज़नेस शुरू किया और होटेल बिज़नेस में कदम रखा।एक कपास कम्पनी शुरू की और साथ ही एक रियल स्टेट कम्पनी भी जिसका नाम था मैटास। मैटास ये नाम याद रखिएगा आगे ।
सन 1987 में अपने साले साहब की सलाह पर रामलिंग ने IT के क्षेत्र में कदम रखा और सिकंदराबाद इलाक़े में 20 कर्मचारियों के साथ एक कम्पनी खोली। जिसका नाम रखा गया सत्यम कम्प्यूटर्स। साल 1991 में कम्पनी को अपना पहला बड़ा क्लाइंट मिला। 1991 में कम्पनी ने बॉम्बे स्टॉक एक्स्चेंज में अपना IPO लॉंच किया।वक्त के साथ कम्पनी ने दिन दुगनी रात चौगुनी तरक़्क़ी की।
1995 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने चंद्र बाबू नायडू ने IT को लेकर खूब इनिशीएटिव लिए। सत्यम को इसका बड़ा फ़ायदा हुआ और 2000 तक आते-आते इंफोसिस, विप्रो, टीसीएस के बाद सत्यम भारत की चौथी सबसे बड़ी IT कम्पनी बन गई। रामलिंग राजू को सिकंदराबाद का बिल गेटस बुलाया जाने लगा।2006 में कम्पनी का चेयरमैनऔर 2007 में उसे सबसे युवा एवं सफल उद्यमी का ख़िताब मिला।
कम्पनी का टर्नओवर 1 बिलियन डॉलर के ऊपर पहुंच गया था। 2008 तक ये 2 बिलियन डॉलर हो गया। 60 से ज़्यादा देशों में कम्पनी ने अपना बिजनेस फैला लिया था।
सत्यम में घपले की कहानी?
सत्यम में जितना प्रॉफ़िट मार्जिन दिखाया जा रहा था, उतना था नहीं प्रॉफ़िट मार्जिन सिर्फ़ 3% था और बताया ज़ा रहा था 26%। ये सब किया जा रहा था फ़र्ज़ी बिल बनाकर और कम्पनी के बिलों को दो तरीक़ों से बनाया जाता था। एक टाइप के बिल पर H मार्क रहता था और दूसरे टाइप के बिल पर मार्क रहता था S। H मतलब Hide और S यानी See।
बिल भी रोज़ नहीं बनाए जाते थे। बल्कि तीसरे, छठे, नवें या बारहवें महीने की एक ख़ास तारीख को ही बिल बनते थे। CBI ने जब कम्पनी के कर्मचारियों के स्वाइप कॉर्ड की डिटेल खंगाली तो पता चला क़रीब एक दर्जन ऐसे लोग थे जो काम खतम हो जाने के बाद ये हेराफेरी किया करते थे। जब भी कम्पनी के तिमाही, छमाही या वार्षिक रिज़ल्ट आने वाले होते, उससे कुछ दिन पहले फ़र्ज़ी यानी H मार्क वाले बिलों को बैलेंस सीट में जोड़ दिया जाता। ताकि कम्पनी का प्रॉफ़िट ज़्यादा दिखे।
रामलिंग को ऐसा करने की क्या वजह थी?
तनख़्वाह तो उसको सीमित ही मिलनी थी, फिर? दरअसल खेल स्टॉक मार्केट का था। कम्पनी का रेवेन्यू बढ़ता तो लोग और इन्वेस्ट करते और सत्यम के शेयर में खूब उछाल आता। शुरुआत में रामलिंग राजू कम्पनी में 16 % का भागीदार था।शेयर की क़ीमत बढ़ी तो वो अपने हिस्से के शेयर धीरे-धीरे बेचता रहता।जनता समझ रही थी कि फ़ायदे का सौदा है पर अंदर की बात सिर्फ़ राजू और उसके क़रीबियों को मालूम थी।राजू के परिवार के लोग कम्पनी के प्रमोटर थे इस लिए वो भी अपने शेयर बेचकर खूब मुनाफ़ा कमाते। अंतिम दिनों तक रामलिंग की हिस्सेदारी सिर्फ़ 3% रह गई थी।उसने बाकी सारे शेयर उसने बेच डाले थे।
क्या किया इन पैसों का?
इन पैसों को उसने अपनी रियल इस्टेट कम्पनी मैटास में इन्वेस्ट किया। 2000 के बाद के सालों में रियल एस्टेट सेक्टर में बूम आया था। लेकिन आंध प्रदेश में नियम था कि एक कम्पनी को 58 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन नहीं बेची जा सकती।इसलिए उसने अपने परिवार वालों के नाम पर 300 से ज़्यादा कम्पनी खोल कर हैदराबाद में क़रीब 6 हज़ार एकड़ ज़मीन ख़रीद ली थी। इसमें भी घालमेल था।उसी साल 2000 में ही खबर लगी गई थी कि मेट्रो प्रोजेक्ट शुरू होने वाला है। इसलिए उसने आसपास की काफ़ी सारी ज़मीन ख़रीद डाली।
इतना ही नहीं उसने कर्मचारियों की तनख़्वाह में भी घालमेल किया। सत्यम में कुल 40 हज़ार लोग काम करते थे। लेकिन दस्तावेज में ये संख्या 53 हज़ार दिखाई जाती थी।इस तरह हर महीने 13 हज़ार लोगों की तनख़्वाह जो लगभग 20करोड़ रुपए होंगी रामलिंग खुद हड़प कर जाता था।
क्या था रामलिंग का जीनियस प्लान
2008 तक ये खेल चला लेकिन फिर मंदी ने दस्तक दी।अमेरिका में मंदी का सबसे बड़ा असर रियल एस्टेट सेक्टर में दिखा था। वही भारत में भी हुआ। रियल स्टेट का कारोबार पूरी तरह बैठ गया। तब सत्यम ने एक तरकीब खोजी जो शुरुआत में हमने आपको एक कम्पनी के बारे में बताया था, मैटास रियल इस्टेट कम्पनी, जिसे रामलिंग राजू ने ही बनाया था और बाद में अपने बेटों को इसका मालिक बना दिया था।
ऑडिट में घोटाला सामने क्यों नहीं आया?
ये पूरा खेल आठ साल से चल रहा था। लाज़मी था कि इंटर्नल ऑडिटर मिले हुए थे। लेकिन एक्स्टर्नल ऑडिटर से बचने के लिए उसने एक खास तरीक़ा आज़माया था. अकाउंटिंग के लिए तब ERP सिस्टम का उपयोग होता था।स्टैंडर्ड सिस्टम यूज़ करने के बजाय, रामलिंग ने अपना ERP सॉफ़्टवेयर बनाया गया।और उसमें कई सारे बैकडोर फ़ीचर डाले गए। ताकि ज़रूरत के हिसाब से हेराफेरी की जा सके। इंटरनेशल ऑडिटिंग कम्पनी प्राइसवॉटरकूपर्स भी इस घपले को नहीं पकड़ पाई।क्यों नहीं पकड़ पाई पूछेंगे तो जवाब वही है।
क्या हुआ सत्यम कंपनी और उनके मालिक रालिंगम का?
घोटाले के बाद बाद में सत्यम को टेक महिंद्रा ने ख़रीद लिया। और 2015 में रामलिंग राजू को 7 साल की सजा हुई। मज़े की बात ये कि सिर्फ़ एक महीने में बेल भी मिल गई और राजू दुबारा जेंटलमेन बन गया। तब से लेकर अब तक राजू साहब हैदराबाद में अपने बंगले में ऐश फ़रमा रहे हैं। शेयर मार्केट में जिनका पैसा डूबा। वो भी अब तक इसे भूल चुके होंगे।एक फ़ाइनल ट्रिविया ये बता दें कि इसी साल यानी 2021 में नेटफ़्लिक्स पर एक सीरीज़ आई थी, Bad Boy Billionaires: India।
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