स्टाम्प पेपर घोटाला, जिसे तेलगी घोटाले के नाम से भी जाना जाता है, एक वित्तीय घोटाला था जो 1992 में शुरू हुआ और 2003 में प्रकाश में आया। इस घोटाले में एक परिष्कृत नकली स्टाम्प पेपर रैकेट शामिल था जो भारत के कई राज्यों में फैला था और इसकी कीमत 30,000 करोड़ रुपये से अधिक थी।
इससे घोटाले के पीछे के मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी को दोषी ठहराया गया। 2020 की वेब सीरीज़ स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी की सफलता के बाद, सोनी लिव ने 4 अगस्त को स्कैम 2003 – द टेल्गी स्टोरी का ट्रेलर जारी किया। इस बार, सीरीज़ अब्दुल करीम द्वारा की गई हाई-प्रोफाइल वित्तीय धोखाधड़ी पर प्रकाश डालेगी। तेलगी.
अब्दुल करीम तेलगी कौन थे?
अब्दुल करीम तेलगी का जन्म 29 जुलाई, 1961 को खानापुर, कर्नाटक, भारत मैं मध्यवर्ती परिवार में हुआ था। अब्दुल करीम के परिवार वाले काफी ज्यादा मध्यवर्ती थे उनके परिवार में ऐसा कोई नहीं था जिन्होंने काफी सारा Royalty पाया हो या फिर जिन्होंने काफी सारा पैसा देखा हो। उनका परिवार और अब्दुल करिए खुद एक सम्मान में व्यक्ति थे।
तेलगी के पिता जी का नाम अज्ञात था और वह एक रेलवे में कर्मचारी थे और अब्दुल के माता जी का नाम शरीफबी लाडसाब तेलगी था जो कि वह एक Housewife थी। आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं अब्दुल करीम के पिताजी अब्दुल को बचपन में ही छोड़ कर चले गए थे उनकी बचपन में ही मृत्यु हो गई थी और उसके बाद अब्दुल करीम के दो बड़े भाई हैं जिनका नाम अब्दुल रहीम तेलगी और अब्दुल अजीम तेलगी था।
तेलुगु का बचपन काफी ज्यादा संघर्ष के साथ गुजारा है बचपन में वह पढ़ाई में ज्यादा अच्छे नहीं थे लेकिन उनका दिमाग काफी ज्यादा तेज था और वह मुश्किल से मुश्किल सवालों को बहुत ही आसानी से हल कर लेते थे लेकिन धीरे-धीरे उनका मन पढ़ाई से हटने लग गया और वह गलत राह पर चल पड़े। तब जाकर तेलगी के परिवार वालों ने तेलगी का शादी कर दिया उनकी एक पत्नी थी जिनका नाम शाहिदा था और इसी के साथ-साथ अब्दुल करीम तेलगी की एक बेटी भी थी जिनका नाम सना तालिकोटि है और उसके पति का नाम इरफान तालिकोटि है।
स्टाम्प पेपर क्या है?
स्टाम्प पेपर वे दस्तावेज़ हैं जो स्टाम्प राजस्व के साथ पूर्व-मुद्रित होते हैं जिन्हें भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के माध्यम से कानूनी रूप से मान्य किया जाता है। स्टाम्प दो प्रकार के होते हैं – न्यायिक और गैर-न्यायिक स्टाम्प। जब किसी को सिविल मामलों में अदालती फीस का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, तो यह न्यायिक टिकटों के रूप में किया जाता है,
क्योंकि नकद और चेक भुगतान के स्वीकार्य रूप नहीं हैं। दूसरी ओर, गैर-न्यायिक टिकटों का उपयोग किसी भी समझौते का मसौदा तैयार करते समय किया जाता है, जैसे कि किराया समझौता, उपहार विलेख, आदि। स्टाम्प पेपर सरकार द्वारा बेचे जाते हैं और इनमें 10 रुपये, 100 रुपये और 500 रुपये सहित विभिन्न मूल्यवर्ग के होते हैं, जिसके लिए राज्य सरकारों को संबंधित शुल्क का भुगतान करना पड़ता है।
स्टाम्प पेपर घोटाला क्या था?
1992 से शुरू हुए तेलगी घोटाले के दो पहलू थे। एक था नकली स्टाम्प दस्तावेज़ तैयार करना। दूसरा, स्टांप पेपर की कमी पैदा करना था जिससे तेल्गी को नकली सामान की आपूर्ति करने का सही अवसर मिल सके। जांच के अनुसार, तेलगी की टीम ने दस्तावेजों की कृत्रिम कमी पैदा करने और नकली कागजात बनाने के लिए मशीनरी और मुद्रण सामग्री प्राप्त करने में मदद करने के लिए महाराष्ट्र में भारतीय सुरक्षा प्रेस के अधिकारियों को रिश्वत दी।
नकली दस्तावेजों में स्टांप पेपर, न्यायिक अदालत शुल्क टिकट, राजस्व टिकट, विशेष चिपकने वाले टिकट, विदेशी बिल, दलाल के नोट, बीमा पॉलिसियां, शेयर हस्तांतरण प्रमाणपत्र, बीमा एजेंसियां और कई अन्य कानूनी दस्तावेज शामिल थे। कथित तौर पर पूरे घोटाले की कीमत 30,000 करोड़ रुपये से अधिक थी।
कैसे खुला घोटाला?
19 अगस्त 2000 को बेंगलुरु के कॉटनपेट में नकली स्टांप पेपर ले जा रहे दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ के दौरान, लोगों ने घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसके बाद पूरे बेंगलुरु में छापे मारे गए, जिसमें नकली स्टांप पेपर और अन्य कानूनी दस्तावेजों का खुलासा हुआ, जिनकी कीमत 9 करोड़ रुपये से अधिक थी। हालाँकि, इस समय, अब्दुल करीम तेलगी उन संदिग्धों में से एक था जो फरार हो गए थे।
घोटाले के मास्टरमाइंड को गिरफ्तार करना
2003 में द फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1992 और 2002 के बीच, अकेले महाराष्ट्र में तेलगी के खिलाफ इन टिकटों से संबंधित कम से कम 12 मामले और अन्य राज्यों से अतिरिक्त 15 मामले दर्ज किए गए थे। उसके खिलाफ 1991 में ही मामले दर्ज किए गए थे। हालांकि, तेलगी के खिलाफ कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की गई।
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय वर्ष 1996-97 के लिए कर विभाग के आकलन में तेलगी की वार्षिक आय 4.54 करोड़ रुपये आंकी गई थी, जिसमें से लगभग आधी आय (2.29 करोड़ रुपये) को “बेहिसाब” बताया गया था। बाद में, तेलगी की कानूनी टीम ने इस संपत्ति का श्रेय केरोसिन परिवहन व्यवसाय को देने का प्रयास किया। हालाँकि, सहायक दस्तावेज़ की कमी के कारण दावा खारिज कर दिया गया था।
अंततः नवंबर 2001 में तेलगी को गिरफ्तार कर लिया गया जब पुलिस को सूचना मिली कि वह तीर्थयात्रा पर राजस्थान के अजमेर की यात्रा कर रहा है। तेलगी की गिरफ्तारी से धीरे-धीरे घोटाले का असली दायरा सामने आ जाएगा। उसने शुरू में पुलिस को बताया कि वह एक घोटाले का एक छोटा सा हिस्सा था जिसमें पुलिस और राजनेताओं सहित कई उच्च-रैंकिंग अधिकारी शामिल थे।
यह सुनकर, विशेष जांच दल (एसआईटी) ने घोटाले की जांच के लिए एक समर्पित टीम के रूप में आईपीएस अधिकारी श्री कुमार के नेतृत्व में “स्टैम्पिट” का गठन किया। एक बार जब 2004 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा तेलगी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था, तो उसे जेल भेज दिया गया था, और एसआईटी उससे ठीक से पूछताछ नहीं कर पाई थी। कथित तौर पर तेलगी ने जेल से अपना काम जारी रखा और 2017 में, उच्च न्यायालय ने दो जेल अधिकारियों को तेलगी को मोबाइल फोन की आपूर्ति करने के लिए दोषी ठहराया।
मामले में उच्च पदस्थ अधिकारी
तेलगी का घोटाला पूरे 1990 के दशक में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के समर्थन से फैला था। विशेष जांच दल (एसआईटी) ने तेलगी के संबंध की जांच करते हुए नवंबर 2002 में एक जांच रिपोर्ट आयोजित की, जिसे जयसवाल रिपोर्ट भी कहा जाता है। हालाँकि, कोई मुद्दा नहीं उठाया गया।
ऐसा तब तक नहीं हुआ जब तक कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने जनहित याचिका दायर नहीं की, एसआईटी ने घोटाले के संबंध में कई उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारियों और यहां तक कि कुछ राजनीतिक हस्तियों को भी पकड़ लिया। एसआईटी महाराष्ट्र के धुले से समाजवादी जनता पार्टी के विधायक अनिल गोटे और तेलुगु देशम पार्टी के विधायक कृष्णा यादव सहित 54 लोगों को गिरफ्तार करेगी। 2003 में एसआईटी द्वारा कथित तौर पर तेलगी को बचाने के आरोप में आयुक्त शर्मा को उनकी सेवानिवृत्ति के एक दिन बाद गिरफ्तार किया गया था।
बताया जाता है कि मुंबई की फेमस बार गर्ल तरन्नुम खान तेलगी की गर्लफ्रेंड थी. तेलगी ने तरन्नुम का डांस देखते हुए एक रात में 93 लाख रुपये उड़ा दिए थे. 300 एमबीए कर चुके लड़कों को नौकरी पर रखा था. फर्जी स्टैंप छापने के लिए तेलगी ने नासिक की सरकारी टकसाल से पुरानी और खारिज हो चुकी मशीन भी नीलामी में खरीदी. इनसे स्टांप पेपर पर आसानी से सुरक्षा चिन्ह (सिक्योरिटी मार्क्स) छप जाते थे.
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