महाराष्ट्र के नांदेड़ में सरकारी अस्पताल में पिछले तीन दिन में 31 मौतें हो चुकी हैं, जिनमें 16 बच्चे भी शामिल हैं. लेकिन 31 मौतों के पीछे हरमुमकिन कोशिश के बावजूद अपनों को खो चुके इन परिवारों की दिल को झकझोर देने वाली 31 कहानियां भी मौजूद हैं. इनमें से कुछ सैकड़ों किलोमीटर का सफर कर अस्पताल पहुंचे थे, तो कुछ ने अपनों के इलाज का खर्च सहन करने की खातिर घर के गहने तक गिरवी रख दिए थे, लेकिन अव्यवस्थाओं और खामियों से लबरेज़ मेडिकल तंत्र ने उनकी उम्मीदों को तार-तार कर डाला.
आंखों को भिगो देने वाली इन्हीं कहानियों को जानने के लिए NDTV ने ग्राउंड ज़ीरो पर जाकर एक ऐसे परिवार से बात की, जिसने अपने दो सदस्यों को गंवाया है, जिनमें एक तो नवजात था. नांदेड़ जिले की ही रहने वाली 21-वर्षीय अंजलि को शनिवार को डॉ शंकरराव चव्हाण सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया था, और कुछ ही घंटे बाद अंजलि ने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया.
अंजलि के साथ अस्पताल में मौजूद उसकी मां, भाई तथा अन्य नातेदार नवजात का स्वागत कर बेहद प्रसन्न थे, लेकिन ख़ुशी ज़्यादा देर नहीं टिक सकी. अंजलि के भाई राजीव ने NDTV को बताया, “सोमवार को डॉक्टरों ने हमें बताया कि बच्चे की मौत हो गई है और मेरी बहन की हालत गंभीर है… आज उन्होंने हमें बताया कि वह (अंजलि) भी हमें छोड़कर चली गई है…” NDTV से बात करते वक्त यह परिवार अस्पताल के बाहर अपनी बेटी का शव मिलने का इंतज़ार कर रहा था, और राजीव अपनी मां को सांत्वना देने की कोशिश कर रहा था, जो तीन ही दिन में नवासे का स्वागत करते-करते बेटी का शोक मनाने तक पहुंच गई.
“हमने तो सब इंतज़ाम कर लिए थे…”
जब राजीव से पूछा गया कि क्या अस्पताल प्रशासन ने उन्हें मौत के कारण की जानकारी दी थी, राजीव ने कहा, “वे कह रहे हैं कि मेरी बहन की मौत खून की कमी से हुई… लेकिन हमने खून की व्यवस्था की थी, हर चीज़ की व्यवस्था की थी… यहां कोई ढंग का डॉक्टर नहीं है… किसी भी मरीज को यहां नहीं आना चाहिए…”
राजीव ने बताया कि उन्होंने अंजलि को उसके पुत्र की मौत की सूचना तक नहीं दी थी. राजीव के मुताबिक, “वह बच्चे की मौत के बाद उसे ढूंढ रही थी… और इसी सदमे से बचाने की खातिर हमने उसे सच नहीं बताया था… लेकिन हम उसे भी नहीं बचा सके…”
“पैसा उधार लिया था, गहने बेचे थे…”
रोटी कमाने के लिए ईंटें बनाने का काम करने वाले राजीव ने बताया कि परिवार ने बहन के इलाज के लिए ब्याज पर पैसे उधार लिए थे. राजीव ने बताया, “हमने 45,000 रुपये खर्च किए… मेरी मां ने अपनी सोने की बालियां भी बेच दीं, लेकिन सब व्यर्थ गया… मेरी बहन मर चुकी है…”
“सिर्फ ट्रेनी डॉक्टरों ने किया अंजलि का इलाज…”
परिवार का आरोप है कि अस्पताल में कोई वरिष्ठ डॉक्टर उपलब्ध नहीं था और सिर्फ ट्रेनी डॉक्टरों ने अंजलि का इलाज किया. आंसुओं को रोकने की कोशिश करती एक महिला रिश्तेदार ने कहा, “हम लोगों को अस्पताल इसलिए लाते हैं, ताकि उनकी हालत में सुधार हो… हम गरीब लोग हैं, कहां जाएं…?”
“यहां दवाएं हैं ही नहीं…”
जब राजीव को बताया गया कि अस्पताल प्रशासन का दावा है कि अस्पताल में डॉक्टरों या दवाओं की कमी नहीं है, तो वह भड़ककर बोला, “कोई दवाएं नहीं हैं… वे दवाइयों के नाम लिखकर दे देते हैं, हमने सब कुछ बाहर से खरीदा… यहां तो टेस्ट तक नहीं किए जा रहे हैं, हमने प्राइवेट लैब में जाकर टेस्ट करवाए हैं…” परिवार ने यह भी आरोप लगाया कि अंजलि के लिए जो खून के पाउच उन्हें मिले थे, उनका इस्तेमाल दूसरे मरीज़ों के इलाज में किया गया.
नांदेड़ अस्पताल में अचानक हुई ढेर सारी मौतों से यहां बुनियादी ढांचे और साफ-सफाई के हालात पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. NDTV ने अस्पताल का दौरा किया, जिस दौरान अस्पताल की कैंटीन के नज़दीक सूअरों को घूमते देखा गया. एक संविदा सफाई कर्मचारी ने बताया कि कर्मचारियों की किल्लत है, और एक-एक कर्मचारी को कई-कई वॉर्डों की सफाई का काम सौंपा गया है. सफाई कर्मी का कहना था, “हर वॉर्ड में दो-तीन सफाईकर्मी होने चाहिए… एक ही शख्स कई-कई वॉर्ड कैसे संभाल सकता है…?”
अस्पताल में हुई मौतों के राष्ट्रीय समाचारपत्रों और चैनलों की सुर्खियां बन जाने के बाद यहां राजनेताओं के दौरे भी लगातार जारी हैं, जिसके चलते औचक प्रतिक्रियाओं के मामले भी सामने आए. इन्हीं में से एक था, जब स्थानीय शिवसेना सांसद ने अस्पताल के कार्यवाहक डीन से गंदा शौचालय साफ करवाया. हालांकि अब शिवसेना सांसद हेमंत पाटिल के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है.
इस बीच, महाराष्ट्र सरकार ने दावा किया है कि नांदेड़ के अस्पताल में दवाओं और डॉक्टरों की कोई कमी नहीं है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को कहा कि उनकी सरकार ने मौतों को बहुत गंभीरता से लिया है, लेकिन उन्होंने दवाओं की कमी से इंकार किया.
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