कंपनियां एस्टेब्लिश होती ही इल्ली है के तो मुनाफ़ा कमाये। फिर चाहें वो करेंसी डॉलर हो, यूरो हो या रुपया।
आइये जानते हैं कि कार्बन क्रेडिट आखिर क्या है? कार्बन क्रेडिट का प्रोडक्शन कैसे होता है, और इन क्रेडिट्स को बेचकर कंपनियां मोटी रकम कैसे कमाती हैं।
हवा के खराबी का इलाज तीन तरीकों से
बढ़ते एयर पॉल्यूशन’ को रोकने के तीन तरीके हैं-
इनमें पहला- उद्योग धंधे पूरी तरह बंद कर दिए जाएं।लेकिन ये कुछ वैसा ही है कि किसी उपलब्ध संसाधन का इस्तेमाल ही न किया जाए, ताकि वो हमेशा सर्वसुरक्षित बना रहे।
दूसरा तरीका है कि उद्योगों को पूरी तरह ऐसे फ्यूल्स पर ले आया जाए, जिनसे प्रदूषण नहीं फैलता।यानी सारे उद्योगों को अक्षय ऊर्जा संसाधनों से चलाया जाए (माने सोलर एनर्जी और विंड एनर्जी से)।ऐसे में कार्बन एमिशन जीरो किया जा सकता है। लेकिन ये फ़िलहाल दूर की कौड़ी है।
तीसरा तरीका है कार्बन क्रेडिट। इस तरीके से न डेवलपमेंट रुकेगा और न ही हवा और बदतर होगी।लेकिन कैसे? समझने के लिए पहले केमिस्ट्री क्लास की तरफ़ रुख करना पडेगा और कार्बन एमिशन को समझना होगा।
आइए जानें कार्बन एमिशन क्या है?
रसायन की भाषा में कहें तो हर उस जीवित चीज़ के अंदर कार्बन है, जो इस यूनिवर्स में पाई जाती है। पेट्रोल-डीज़ल, कोयला ये फॉसिल फ्यूल्स कहे जाते है।फॉसिल फ्यूल्स की थ्योरी के मुताबिक़ ये भी हाइड्रोकार्बन हैं, माने हाइड्रोजन और कार्बन के अलग-अलग कम्पोजीशन वाले कंपाउंड्स।करोड़ों साल मृत पौधे और समुद्री जीव-जंतु जब समुद्र की तलछट में दबे रहते हैं तो फॉसिल फ्यूल्स में बदल जाते हैं, ऐसे समझिए कि ये वही कच्चा तेल हैं जिसे रिलायंस की रिफाइनरीज़ समुद्र से निकालती हैं।
इसी तरह कोयला भी करोड़ों साल से मिट्टी में दबी हुई लकडियाँ और जानवरों के अवशेष ही हैं,जिसमे हाइड्रोजन और कार्बन है। जो कभी खत्म नहीं होता।तब भी नहीं जब इनका इस्तेमाल ईंधन की तरह जलाने में किया जाता है।
अब जाने कार्बन क्रेडिट क्या होता है?
कार्बन क्रेडिट एक तरह का सर्टिफिकेट या परमिट है, जो किसी इंडस्ट्री को कार्बन एमिशन करने की परमीशन देता है। परमीशन मतलब ये नहीं कहता कि कोई देश या उसकी इंडस्ट्री कार्बन एमिशन करे, बल्कि एक लिमिट तय कर दी जाती है, जिसके ऊपर कार्बन एमिशन नहीं किया जा सकता।माने कुल मिलाकर इस प्लान को बनाया ही इसलिए गया है कि ग्रीन हाउस गैस कम रिलीज हो।
कार्बन-क्रेडिट काम कैसे करता है?
साल 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल बना, बनाया UNNFCC ने ये नियम बना कि क्योटो प्रोटोकॉल पर साइन करने वाले देश ग्रीनहाउस गैसेज़ के एमिशन्स पर बनाए गए रूल्स को फॉलो करेंगे।
बाद में 2015 के पेरिस समझौते में भी क्लाइमेट चेंज को लेकर कुछ रूल्स बनाए गए, जिनपर 195 देश सहमत हुए।रूल्स कुछ यूं थे कि कोई देश या इंडस्ट्री कार्बन-क्रेडिट में दी गई लिमिट से ज्यादा कार्बन डाई-ऑक्साइड या उसके ही बराबर कोई दूसरी ग्रीन हाउस गैस का एमिशन नहीं कर सकता।
कैसे कमाते है कार्बन क्रेडिट?
मान लीजिए कि अमेरिका ने क्योटो प्रोटोकॉल पर साइन कर दिया।और उनका कार्बन एमिशन दी गई लिमिट से ज्यादा है।मान लीजिए एक टन से ज्यादा। ऐसे में अमेरिका और वहां की कंपनीज़ के पास दो रास्ते बचे।एक या तो वो कुछ ऐसी नई तकनीक विकसित करें, जिससे इंडस्ट्रियल कार्बन एमिशन कम हो जाए और कार्बन क्रेडिट की उनकी लिमिट न टूटे।
इस तरह उनकी इंडस्ट्री समान्य तौर पर चलती रहेगी। लेकिन अगर अमेरिका ऐसा करने में किसी वजह से फेल रहता है तो उसे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा। और दूसरा रास्ता ये है कि वो दूसरे किसी देश में ऐसी कोई टेक्नोलॉजी डेवेलप कर दें ताकि उस दूसरे देश में ग्रीन हाउस गैसों का एमिशन कम हो जाए।
माने वो दूसरे किसी देश में सोलर पैनेल लगवा दें, विंड एनर्जी प्लांट शुरू कर दें या पेड़ पौधे लगाने का काम करें।साफ शब्दों में कहें तो वो दूसरे देश में जाकर ग्रीन हाउस गैस एमिशन कम करने वाले किसी प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट कर दे।
कार्बन क्रेडिट हो सकता है एक अच्छा बिज़नेस
बड़े कंपनीज की बात हो तो ये बड़े स्तर की बात हो गई, छोटे स्तर पर भी हमारी पृथ्वी की हवा साफ़ की जा सकती है।कुछ आर्गेनाईजेशन ये काम कर भी रहे हैं और बदले में मुनाफा कमा रहे हैं। देश का सबसे स्वच्छ शहर कहे जाने वाले इंदौर का म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन पहली सिविक बॉडी है, जिसने साल 2020 में बायो-मीथेशन प्लांट्स लगाए और 1.7 टन कार्बन एमिशन रोका।बदले में इंदौर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने 50 लाख रूपए कमाए।
इसी साल DMRC यानी दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने करीब 3.5 मिलियन कार्बन क्रेडिट्स की बिक्री से 19.5 करोड़ रुपये की कमाई की है।
Article by- Nishat Khatoon
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