कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खुले तौर पर खालिस्तानी आतंकवादियों के पक्ष में उतर आए हैं। उन्होंने एक खालिस्तानी आतंकवादी की मौत का जिम्मेदार भारतीय एजेंसियों को बताया है। जस्टिन जैसी गलती आज कर रहे हैं वैसी ही गलती उनके पिता पियरे ट्रूडो (Pierre Trudeau) आज से लगभग 4 दशक पहले कर चुके हैं और इसके काफी भयानक परिणाम कनाडा को भी भुगतने पड़े थे।
जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो ने भी खालिस्तानी आतंकियों का पक्ष लिया था। जस्टिन के पिता पियरे वर्ष 1968 से लेकर 1979 और 1980 से 1984 के बीच कनाडा के प्रधानमंत्री रहे थे। इस दौरान भारत में खालिस्तान का आतंक चरम पर था और खालिस्तानी आतंकी भारत से भागकर कनाडा में शरण ले लेते थे।
भारत ने बढ़ते हुए आतंकवाद को रोकने के लिए कनाडा से इन तत्वों पर कार्रवाई की माँग की थी। पियरे ट्रूडो की सरकार ने इस दौरान भारत का सहयोग करने से इनकार कर दिया था। पियरे ट्रूडो की सरकार ने इस दौरान ना ही कनाडा में संचालित भारत विरोधी गतिविधियों को रोका और ना ही उन आतंकियों को भारत वापस भेजा जो कि लगातार कनाडा में बैठकर भारत को तोड़ने की साजिश कर रहे थे।
इसी कड़ी में भारत ने खालिस्तानी आतंकी तलविंदर सिंह परमार को प्रत्यर्पित करने को कहा था, जो उस समय कनाडा में रहता था। परमार ‘बब्बर खालसा इंटरनेशनल’ का पहला मुखिया था। वह 1970 में कनाडा भाग गया था और वहीं से खालिस्तानी गतिविधियों को संचालित करता था।
तलविंदर पर वर्ष 1981 में पंजाब पुलिस के 2 जवानों की हत्या का आरोप भी है, जिसके लिए उसे 1983 में जर्मनी में गिरफ्तार किया गया था। तलविंदर परमार ने पंजाब के बड़े नेता लाला जगत नारायण की भी वर्ष 1981 में हत्या कर दी थी। तलविंदर इसके अतिरिक्त अन्य कई हत्याओं में भी शामिल रहा था। तलविंदर ने 1985 में एयर इंडिया के एक बोईंग 747 विमान जिसका नाम ‘कनिष्क’ था, उसे बम से उड़ा दिया था। यह विमान कनाडा के शहर मॉन्ट्रियल से लंदन के रास्ते भारत आ रहा था।
इस विमान में तलविंदर ने इन्दरजीत सिंह रैयत तथा अन्य कुछ आरोपितों के साथ मिलकर बम रखा था जो कि विमान की उड़ान के बीच प्रशांत महासागर में फट गया था और इस हादसे में 329 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी। इस हादसे में मरने वाले 268 व्यक्ति कनाडाई नागरिक ही थे। उसने इसी दिन एक और विमान को बम से उड़ाने के लिए एक बैग में बम रखा था, लेकिन वो इसे विमान के भीतर नहीं डाल पाया और टोक्यो में ही फट गया। तलविंदर ने यह बम एयर इंडिया के टोक्यो से बैंकाक जाने वाले विमान में रखने का प्लान बनाया था।
इसके लिए उसने वैंकुवर से उड़े एक विमान में रखे एक बैग में बम रखा था जो कि आगे जाकर टोक्यो में एयर इंडिया के विमान में हस्तांतरित किया जाना था। टोक्यो के एयरपोर्ट में यह बैग इस विमान से निकाले जाने और एयर इंडिया के विमान में रखे जाने से पहले ही स्टोरेज क्षेत्र में फट गया जिसमें 2 जापानी एयरपोर्ट कर्मियों की मृत्यु हो गई थी।
इस हादसे की जाँच भी आगे कहीं नहीं पहुँच सकी क्योंकि कनाडा की सरकार ने इसमें काफी ढील बरती और मात्र इंदरजीत सिंह रैयत ही मात्र आरोपी ठहराया जा सका। इंदरजीत को भी जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने 2017 में छोड़ दिया था और सामान्य जीवन बिताने को कह दिया था। यह भी दावा किया जाता है कि कनाडा की पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों को इस बात की जानकारी थी कि तलविंदर सिंह ऐसा कोई बड़ा काण्ड करने वाला है लेकिन तब भी उन्होंने इसको गंभीरता से नहीं लिया और इसके कारण इतना बड़ा हमला हुआ।
वहीं तलविंदर सिंह परमार को कॉमनवेल्थ नियमों का हवाला देकर भारत को नहीं सौंपा गया था। नियमों के अनुसार, 2 कॉमनवेल्थ देशों के बीच अपराधियों के प्रत्यर्पण के लिए अलग से संधि नहीं करनीं पड़ती है। इसी आधार पर इंदिरा गाँधी की सरकार ने परमार को भारत वापस भेजने को कहा था लेकिन पियरे ट्रूडो की सरकार ने यह कारण दिया कि भारत कॉमनवेल्थ का सदस्य तो है लेकिन वह ब्रिटेन की रानी को अपना राष्ट्राध्यक्ष नहीं मानता, इसलिए परमिंदर को भारत नहीं भेजा जा सकता।
परमिंदर को भारत ना भेजने और खालिस्तानियों पर ढील बरतने के कारण कनाडा में उस समय खालिस्तानी आतंकवादियों के हौसले खूब बढ़ गए थे, उन्होंने ऐसे सिखों को निशाना बनाना चालू कर दिया था जो कि अलग देश की माँग का विरोध करते थे। इसी कड़ी में वर्ष 1998 में इंडो-कैनेडियन अखबार के सम्पादक तारा सिंह हायेर को मार दिया गया था। तारा सिंह को 18 नवम्बर, 1998 में उनके घर के बाहर गोली मार दी गई थी।
वह सिख आतंकवाद के विरोधी थे और इस बारे में लिखते रहते थे। उन्होंने 1988 में एयर इंडिया विस्फोट के बारे में लिखते हुए बताया था कि इसमें तलविंदर का हाथ हो सकता है। तलविंदर सिंह परमार बाद में भारत में एक एनकाउंटर में मार गिराया गया था। वह एयर इंडिया के इस विमान में बम धमाका करने के बाद भारत लौट आया था और यहाँ पर अपनी आतंकी गतिविधियों में लिप्त था। उसे वर्ष 1992 में पंजाब पुलिस ने एनकाउंटर में मार दिया था।
जस्टिन के पिता पियरे ट्रूडो की एक गलती के कारण 329 निर्दोष व्यक्तियों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी और लोग हवाई यात्रा करने से भी डरने लगे थे। जस्टिन यही गलती फिर दोहरा रहे हैं। गौरतलब है कि उनकी सरकार पिछले कुछ सालों से ऐसे कृत्यों पर एकदम शांत है जिनमें भारत को सीधे सीधे धमकी दी गई है।
कनाडा में लगातार हिन्दू मंदिरों पर हमले सहित भारतीय राजनयिकों को मारने की धमकियाँ सार्वजनिक रूप से दी जा रही है लेकिन कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों ने इन सब कामों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। इसके अतिरिक्त, हाल ही में कनाडा में एक खालिस्तान रैली में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या वाली झाँकी निकाली गई थी।
जस्टिन ट्रूडो लगातार ऐसे तत्वों के साथ नजर आते हैं जो कि भारत को तोड़ने के लिए प्रयास कर रहे हैं। जस्टिन, जसपाल अटवाल के साथ नजर आते रहे हैं जो कि एक खालिस्तानी आतंकवादी है। कनाडा में गुरवन्तपंत सिंह पन्नू पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। वह दिन भर भारत के विरुद्ध जहर उगलता है।
कनाडा सरकार के इस रवैये से भारत में सुरक्षा खतरों के साथ ही कनाडा में रहने वाले हिन्दुओं तथा खालिस्तान का विरोध करने वाले सिखों का जीवन खतरे में पड़ गया है। जस्टिन ने अपने पिता की गलितयों से नहीं सीख कर स्थितियों को और जटिल बना दिया है। उन्होंने भारत का सहयोग करने के बजाय विरोध करने निर्णय लिया है।
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