मौजूदा समय में दुनिया भर में जारी अनिश्चितता के बीच एक आंकड़ा राहत की सांस लेकर आया है. इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के द्वारा जारी दुनिया भर पर कर्ज के डेटाबेस के नए आंकड़ों के मुताबिक,दुनिया भर पर कर्ज का बोझ लगातार दूसरे साल कम हुआ है, लेकिन अभी भी ये महामारी के पहले के स्तर से ज्यादा बना हुआ है. आंकड़ों के अनुसार ग्लोबल जीडीपी के मुकाबले कर्ज पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी कम हुआ है लेकिन 2019 के मुकाबले इसमें 9 फीसदी की बढ़त रही है.
कहां पहुंचा दुनिया का कर्ज
IMF ने बताया कि 2022 में कुल कर्ज दुनिया भर की जीडीपी का 238 फीसदी था, ये आंकड़ा 2019 के मुकाबले 9 फीसदी ज्यादा है. डॉलर के हिसाब से बात करें तो, कर्ज 235 लाख करोड़ डॉलर है, जो 2021 के मुकाबले 200 अरब डॉलर ज्यादा है. आईएमएफ ने कहा कि दुनिया भर की सरकारों को अगले कुछ सालों में ऋण स्थिरता को बनाए रखने के लिए अपने कमिटमेंट पर डटे रहना होगा.
फाइनेंशियल एजेंसी ने आगे कहा कि सरकारों को कर्ज से जुड़ी कमजोरियों को घटाने और लॉन्ग-टर्म डेट ट्रेंड्स को बदलने में मदद के लिए जल्द से जल्द कदम उठाने चाहिए. निजी क्षेत्र के कर्ज के लिए पॉलिसीज में घरेलू और गैर-वित्तीय कॉर्पोरेट ऋण बोझ और संबंधित वित्तीय स्थिरता जोखिमों की सतर्क निगरानी शामिल हो सकती है. सरकारों के कर्ज से जुड़ी कमजोरियों के लिए, एक विश्वसनीय फिस्कल स्ट्रक्चर का निर्माण स्थिरता के साथ खर्च की जरूरतों को बैलेंस करने की प्रक्रिया को दिशा दे सकता है.
अभी भी ऊपरी स्तरों पर है दुनिया का कर्ज
आईएमएफ की लेटेस्ट रिलीज से पता चलता है कि 2020 से आर्थिक विकास में उछाल और उम्मीद से कहीं ज्यादा महंगाई के बावजूद, सार्वजनिक ऋण काफी ऊंचा बना हुआ है.आईएमएफ ने कहा कि राजकोषीय घाटे ने 2022 में सरकारों के द्वारा उठाए गए कर्ज के स्तर को ऊंचा रखा, क्योंकि कई सरकारों ने विकास को बढ़ावा देने और खाद्य और एनर्जी की कीमतों में बढ़ोतरी को कंट्रोल करने के लिए ज्यादा खर्च किया. प्राइवेट डेट में घरेलू और गैर-वित्तीय कॉर्पोरेट कर्ज शामिल हैं.
कर्ज स्तर बढ़ाने में चीन का बड़ा योगदान
आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक, हाल के दशकों में कर्ज बढ़ाने में चीन ने अहम भूमिका निभाई है. चीन का कुल कर्ज 47.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है, अमेरिका का कर्ज लगभग 70 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है. रिपोर्ट से पता चलता है कि गैर-वित्तीय कॉर्पोरेट ऋण के लिए, चीन की 28 प्रतिशत हिस्सेदारी दुनिया में सबसे बड़ी है. कम आय वाले विकासशील देशों में भी पिछले दो दशकों में ऋण में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है.
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