इस वर्ष जर्मनी के बर्लिन में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में नए खेल को शामिल किया गया है। कैनोइंग (Canoeing) नाम से प्रसिद्ध इस वाटर गेम के प्रति बच्चों की दिवानगी इस ओलंपिक के बाद से बढ़ गई है। वैसे झारखंड के लिए यह खेल नया नहीं है। यहां के खिलाड़ी वर्ष 2009 से ही इस खेल के आयोजन में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।
हालांकि विभिन्न खेलों में अपनी अलग पहचान बनाने वाले झारखंड में 14 साल बाद भी इस खेल का समुचित विकास नहीं हो पाया है। बर्लिन ओलंपिक के बाद इसका बढ़ता क्रेज इस खेल के स्वर्णिम भविष्य की ओर इशारा जरूर कर रहा है। रांची और प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह कोल्हान में भी इस खेल के प्रति दिवानगी बढ़ रही है। यही कारण है कि यहां के 50 बच्चे इस वाटर गेम का बकायदा प्रशिक्षण ले रहे हैं।
धनबाद के मैथन व गिरिडीह के खंडोली डैम में प्रशिक्षण
जानकार बताते हैं कि इस खेल में एक बोट के माध्यम से पानी के बीच में चप्पू चलाते हुए प्रतियोगिता होती है। इसमें सामान्य बोट की तरह ही एक बोट होती है, जिसमें खिलाड़ी कैनोइंग में घुटने के बल बैठकर चप्पू चलाते हैं। हालांकि इस बोट की कीमत न्यूनतम एक से दो लाख तक होती है। यही कारण है कि इसकी ट्रेनिंग फीस अन्य खेलों से ज्यादा होती है। आमतौर पर पूरे प्रदेश में इसकी ट्रेनिंग धनबाद के मैथन और गिरिडीह के खंडोली डैम में दी जाती है। प्रशिक्षण के बाद इसकी प्रतियोगिता आयोजित कराई जाती है। ट्रेनिंग का सबसे अच्छा समय गर्मी का होता है, पर ट्रेनिंग बारिश को छोड़कर आम दिनों में भी जारी रहती है। गर्मी में तो विशेष तौर पर समर कैंप लगाये जाते हैं। ऐसे बच्चों की स्कूल की छुट्टी के कारण होता है।
खेल को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में प्रचार-प्रसार की जरूरत
झारखंड कैनोइंग एसोसिएशन के अध्यक्ष एसएम हाशमी का कहना है कि इस खेल को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में प्रचार-प्रसार की जरूरत है। इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। निकट भविष्य में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता कराई जाएगी। एक गेम कराने में लगभग 50 लाख का खर्च आता है और इस खेल के लिए प्रायोजक भी नहीं मिलते हैं। हर जिले में प्रतिनिधि जाकर युवाओं के बीच इस खेल के बारे में बताते हैं। जून-जुलाई में फ्री समर कैंप भी आयोजित किये जाते हैं।
बच्चों को इससे जोड़ने के लिए स्कूल प्रबंधन से भी बात की जाएगी। एसोसिएशन के सचिव मो. जूबेर और कोषाध्यक्ष नवल प्रसाद हैं। अध्यक्ष का कहना है कि भविष्य में राष्ट्रीय प्रतियोगिता के आयोजन के बारे में मंथन चल रहा है, पर इससे पहले इसे प्रमंडल और जिलास्तरीय आयोजन जरूरी है। भविष्य में प्रत्येक प्रमंडल में समर कैंप का आयोजन किया जाएगा। इसके लिए अलग-अलग डैमों को चिह्नित किया जा रहा हैं, जहां यह खेल संभावित हो सकेगा। प्रदेश सरकार से भी इस बारे में मदद की दरकार है। इस बारे में एसोसिएशन जल्द ही खेल मंत्री से मुलाकात कर उन्हें कार्ययोजना से अवगत कराएगा।
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