राजनीति और व्यक्तिगत पहचान के बीच एक गहरा संबंध होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्तिगत पहचान की राजनीति सभी के लिए कमजोर होती है, लेकिन यह तय है कि इसमें कुछ अद्वितीय और चुनौतीपूर्ण पहलू होते हैं।
व्यक्तिगत पहचान की राजनीति का मुख्य उद्देश्य अपने समृद्धि और विकास की प्रक्रिया में समाज के अलग-अलग समृद्धि समूहों की आवश्यकताओं और दरिद्रता के साथ संबंधित मुद्दों को उचित ध्यान में रखना है। यह एक प्रकार की न्याय संरक्षण की राजनीति होती है, जिसका उद्देश्य उन वर्गों को समाज की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया में शामिल करना है जो परंपरागत रूप से अदालत और समाज में असमानता से प्रभावित होते हैं।
इसके बावजूद, कुछ लोग यह मानते हैं कि व्यक्तिगत पहचान की राजनीति आपसी असमझ, विभाजन और आरक्षित समृद्धि समूहों के बीच आपसी सहमति की बजाय विभाजन को बढ़ावा देती है। इसके परिणामस्वरूप, राजनीतिक स्पष्टता की बजाय, व्यक्तिगत पहचान की राजनीति कई बार बिना संतुलन के राजनीतिक वाद की प्रेरणा स्त्रोत बन जाती है।
राजनीति की परिभाषा:आज के दौर में
आज के समय में, राजनीति न केवल सरकारी और राजनीतिक प्रक्रियाओं को संदर्भित करती है, बल्कि यह सामाजिक मीडिया, सोशल मीडिया, और लोगों के व्यक्तिगत जीवन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राजनीति आधारित होती है जिसमें नेताओं और सार्वजनिक प्रतिष्ठाओं का चयन और चुनाव, नीतियों और कानूनों का निर्माण, समाज के मुद्दों पर विचार किया जाता है, और सरकारी निर्णय लिए जाते हैं।
आज के समय में राजनीति न केवल देशों और राज्यों के स्तर पर होती है, बल्कि यह ग्लोबल स्तर पर भी महत्वपूर्ण है, जिसमें विभिन्न देशों के बीच संबंध, व्यापार, और आंतर्राष्ट्रीय मुद्दे शामिल होते हैं। इसलिए, आज के दौर में राजनीति का अर्थ बहुत व्यापक है और इसमें समाज, सरकार, और संगठनों के बीच संबंधों के अध्ययन को समाहित किया जाता है।
राजनीति के कई पहलु और प्रक्रियाएं समाजिक असमानता को फैला रही हैं
- आर्थिक असमानता: धन के विभिन्न वर्गों के बीच बढ़ रही है, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक असमानता बढ़ रही है। धन की संपत्ति और संसाधनों का अनुभव विभिन्न लोगों के लिए अलग हो रहा है, और यह उन वर्गों के लिए और भी मुश्किल बना रहा है जिन्हें आर्थिक संघटन का सामना करना हो रहा है।
- सामाजिक असमानता: समाज में जाति, लिंग, धर्म, और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव और असमानता भी बनी हुई है। यह सामाजिक असमानता अकेले उनके लिए नहीं होती है जो समाज के अलग-अलग वर्गों से हैं, बल्कि यह उनके लिए भी होती है जो उन समाजों में हैं जिनमें यह असमानता बनी हुई है।
- राजनीतिक दलों का खेल: राजनीतिक दल और नेता आम लोगों के लिए अपने हितों को पूरा करने के बजाय, अक्सर अपने पार्टी और संघ के हितों के लिए ज्यादा प्रतिबद्ध रहते हैं। यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देता है, क्योंकि सामाजिक सरकार के निर्णयों को विशेष दलों और समृद्धि समूहों के लिए बदल दिया जाता है।
- जातिवाद और असमानता: कुछ स्थानों पर, जातिवाद और जाति आधारित भेदभाव आज भी असमानता को बढ़ावा देने में योगदान कर रहे हैं।
इसलिए, हम कह सकते हैं कि आज की राजनीति के कुछ पहलु और प्रक्रियाएं समाजिक असमानता को बढ़ावा देने में योगदान कर रही हैं, और इसे समाधान करने के लिए नीतिगत उपायों की आवश्यकता है।
“पहचान की राजनीति और जाति: क्या यह न्यायमूल्यित है?”
पहचान की राजनीति और जाति दो अहम और विवादास्पद विषय हैं जिन्होंने भारतीय समाज में विवादों को उत्पन्न किया है। यह विशेष रूप से उस अवस्था में महत्वपूर्ण होता है जब हम इन दोनों को न्यायमूल्यित करने की कोशिश करते हैं:
- समाजिक असमानता का सामना: जाति आधारित पहचान और राजनीति कई स्थानों पर समाजिक असमानता के साथ जुड़ी हुई है। यह असमानता वर्गों के बीच वितरित संसाधनों, अवसरों, और अधिकारों में अंतर को बढ़ावा देती है और इसके परिणामस्वरूप कई लोग सामाजिक और आर्थिक असमानता का शिकार होते हैं। पहचान राजनीति कई बार इस असमानता को उजागर करती है और लोगों को उनके समाजिक वर्ग और जाति के साथ जोड़ती है।
- अधिकार और प्रतिष्ठा की लड़ाई: पहचान राजनीति जाति और समाज के अलग-अलग समृद्धि समूहों के बीच अधिकारों और प्रतिष्ठा की लड़ाई को बढ़ावा देती है। यह लड़ाई आमतौर पर आरक्षित वर्गों के लिए विशेष आरक्षित योजनाओं, आरक्षित सीटों, और अन्य विशेष प्राधिकृतियों को लेकर होती है, जिससे वाम्पंथी पहचान राजनीति के अधिकारों की विरोधी उपयोग की ओर बढ़ती है।
- सामाजिक समृद्धि की दिशा: अनुसूचित जातियों और उनके प्रतिनिधित्व के माध्यम से, पहचान राजनीति आपके समाज में समृद्धि की दिशा में बदलाव कर सकती है। यह एक तरह की समाज के न्याय की राजनीति हो सकती है जो समाज के विभिन्न समृद्धि समूहों के लिए न्याय की प्राथमिकता देती है।
इन सभी पहलुओं के बावजूद, पहचान की राजनीति का न्यायमूल्यन करना विवादित है और इसके कई सिद्धांतिक और नैतिक पहलु होते हैं। इस परिपर्णता और विवाद के बावजूद, यह एक महत्वपूर्ण और आवश्यक चरण हो सकता है जो समाज में समाजिक और आर्थिक असमानता को कम करने की दिशा में मदद कर सकता हैI
Article by- Nishat
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