आदिवासी बहुल क्षेत्र में गोम्हा पर्व का एक अलग महत्व है
जहां एक ओर पूरे देश में रक्षाबंधन हार्दिक मिलन भाव को प्रकट करने वाला भाई- बहन का एक प्रमुख त्योहार है, वहीं झारखंड के कई जिलों में इसे गोम्हा पर्व के रूप में मनाया जाता है। आदिवासी बहुल क्षेत्र में गोम्हा पर्व का एक अलग महत्व है। यह समय किसानों के लिए भी रोपाई निकाय के बाद फुर्सत का समय होता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से आदिवासी बहुल क्षेत्र में गुरु-चेला बैठे हुए सज्जनों का यह परीक्षा का समय होता है, जिसे झुंपार के नाम से जाना जाता है।
सभी चेला पूर्णिमा के दिन उपवास रहते हुए शाम को अखाड़े में गुरु के सामने तेल और सिंदूर लेकर दोनों हाथों को मलते हैं। कहते हैं जिनको झुंपार आ जाता है वह ओझा बनता है, लेकिन यह परंपरा गांव में धीरे-धीरे विलुप्त होती नजर आ रही है। किसी-किसी परिवार में इसी तिथि को दीवार पर गोम्हा बुड़ी जिसे मां दुर्गा का रूप माना जाता है का चित्र अंकित कर विधि विधान पूर्वक पूजा करते हैं।
आदिवासी-मूलवासी परिवार में मांस का पीठा बनाकर गोम्हा पर्व का इजहार करते हैं
आदिवासी-मूलवासी परिवार में मांस का पीठा बनाकर गोम्हा पर्व का इजहार करते हैं। धर्म की दृष्टि से यह पर्व गुरु-शिष्य के परस्पर नियम व सिद्धांतों सहित उनके परस्पर धर्म को प्रतिपादित करने वाला है. संबंध की दृष्टि से यह भाई-बहन के परस्पर संबंधों की गहराई को प्रकट करने वाला एक दिव्या एवं श्रेष्ठ त्यौहार है, जिसमें बहन भाई के लिए मंगल कामना करती हुई उसे रक्षा सूत्र बनती है. भाई उसे हर स्थिति में रक्षा करने का वचन देता है।
पौराणिक मान्यताएं
दूसरी और विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने जब वामन अवतार लिया था तब उन्होंने सुप्रसिद्ध अभिमानी दानी राजा बलि से केवल तीन पग धरती दान में मांगी थी। बलि द्वारा स्वीकार करने पर भगवान बामन से संपूर्ण धरती को मापते हुए बली को पाताल भेज दिया। इस कथा में कुछ धार्मिक भावनाओं को जोड़कर इसे रक्षाबंधन के रूप में याद किया जाने लगा। परिणाम स्वरूप आज भी ब्राह्मण अपने यजमानों से दान लेते हैं और उनको रक्षा सूत्र में बनते हैं।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया तब सुरक्षा का और कोई रास्ता न देखकर महारानी कर्मावती अपने पर आई हुई इस आकस्मिक आपदा से आत्मरक्षा की बात सोच कर दु:खी हो गई उसने और कोई उपाय न देखकर हुमायूं के पास रक्षाबंधन का सूत्र भेजी एवं अपनी सुरक्षा के लिए उसे भाई कहते हुए सादर प्रार्थना की ।चित्तौड़ की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी सेना लेकर हुमायूं बहन कर्मावती के पास पहुंच गया तबसे इस त्यौहार का महत्व और बढ़ने लगा।
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लेखक- उज्वल कुमार मंडल (ये लेखक के अपने विचार हैं)
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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